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________________ वयें गोड़े पर बालक बैठा हुआ है। इस अलंकृत आसन के मध्य उलटे हुए कमल का गोल आसन है जिस पर धर्मचक्र के उभय पक्ष में बैठे सुन्दर मृग प्रभु के मुखमण्डन्त को निहार रहे हैं। प्रतिमा के आकार और रिक्त स्थान में विद्रों को देखने से प्रतीत होता है कि यह अवश्य ही चतुविंशति जिन पट्टक रहा होगा जिसका तेईस प्रतिमाओं से युक्त परिकर बिछुड़ कर अलग हो गया है । इस पर निवृत्त कुल के 'जिनभद्र वाचनाचार्य के नाम का अभिलेन है। प्रस्तुत लेख की लिपि देखते हुए डा० उमाकांत शाह ने इसे सुप्रसिद्ध श्वेताम्बर जैन विद्वान जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण का और सन् ५५० के लगभग का बताया है । भगवान आदिनाथ को वारीक धोती पहने हुए दिखाया है जिस पर सुन्दर डिजाइन बना हुआ है । आदिनाथ की प्रतिमा सवस्त्र होते हुये भी नग्नत्व- पुरुषचिन्ह स्पष्ट परिलक्षित होता है, यह आश्चर्यजनक है । यह प्रतिमा बड़ौदा संग्रहालय में है । ६. अम्बिका देवी- यह प्रतिमा छठी शताब्दी के उत्स रार्द्ध की लेटे हुए सिंह पर ललितासन में विराजमान अम्बिका देवी की है। देवी के दाहिने गोड़े पर बालक बैठा है और दाहिनी ओर भी एक बालक खड़ा है । अलंकृत पीठ पर देवो और उसके पाश्र्ववर्ती स्तम्भ कमल-पुष्पा कृति युक्त है और उसके बगल में ग्रह बने हुए हैं। स्तम्भों में अलंकृत पट्टों के सहारे देवी विराजमान है और ऊपरी भाग में प्रभामण्डल कमल पंखुड़ियों से युक्त है। चारों ओर बेल-पत्तियों का बोर्डर है । इसके ऊपरी भाग में ध्यानस्थ जिन प्रतिमा बनी हुई है। देवी के विशाल ललाटों पर मुकुट पर्याप्त ऊँचा और किरीट युक्त है। कानों में कुण्डल, गले में एकावली हार, चन्द्रकला हार व घंटिका-घुंघरु हार, मंगलमाला पहनी हुई है। हाथों में भुजवन्द सुशोभित है । इस प्रतिमा के पृष्ठ भाग में क्षतिग्रस्त अभिलेख उत्कीर्णित है। देवी की साड़ी धारीदार है। मुखाकृति तेजस्विता - Jain Education International पूर्ण है। यह प्रतिमा भी बड़ौदा संग्रहालय में प्रदर्शित है। ७. पार्श्वनाथ त्रितीर्थी यह कांस्य प्रतिमा आकोटा से प्राप्त अखण्ड सुन्दर और बड़ौदा संग्रहालय में विद्यमान ६८ प्रतिमाओं में से एक है। इसकी कला शैली में परिकर निर्माण का परिष्कृत रूप स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है । पिण्डवाड़ा की प्रतिमा शैली से इसकी तुलना की जा सकती है। सतपण मण्डित पार्श्वनाथ भगवान की भव्य प्रतिमा के उभय पक्ष में जो दो काउसग्गिए ध्यानस्थ खड़े हैं वे फूलदार धोती पहने हुए है। उनके बगल में नीचे आसन पर दो चामरधारिणी अवस्थित हैं। तीनों जिन प्रतिमाओं के मस्तक पर छत्र सुशोभित है। ऊपरी भाग में एक देव ढोलक लिये बैठा है और प्रभु के छात्रों के पीछे वृक्ष के पत्ते दिखाई देते हैं प्रभु के नोचे अलंकृत पव्वासन और उलटे कमलासन के नीचे वस्त्रासन लटक रहा है। जिसके नीचे हरिण युगल युक्त धर्म चक्र है। सिंहासन के नीचे दो सिंह परिलक्षित है। इसके उभयपक्ष में दाहिनी और यक्ष व वाम पार्श्व में अम्विकादेवी विराजमान हैं । इनके आगे नौ ग्रहों की मूर्तियाँ स्पष्ट है। मध्यवर्ती दाहिने कोने में चैत्यवंदन मुद्रा में भक्त श्रावक बैठा दिखलाया है। प्रतिमा कलापूर्ण व सुन्दर है । प चतुर्विंशति पट्ट- यह कांस्यमय चौबीसी भी बड़ौदा संग्रहालय में प्रदर्शित है। मध्यवर्ती ऋषभदेव भगवान कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित हैं। अवशिष्ट तेईस तीर्थकर पद्मासन मुद्रा में विराजित हैं। ऋषभदेव प्रतिमा के नीचे कमलासन और तन्निम्न भाग में धर्मचक्र, मृगयुगल और उभय पक्ष में नौ ग्रह बने हुए हैं। बगल में उभय पक्ष से निर्गत शाखा की भाँति कमल नाल पर वाम पार्श्व में अम्बिका देवी विराजमान हैं। ९. चामरधारिणी - यह कांस्य मूर्ति अत्यन्त सुन्दर, "लचकदार देहयष्टि युक्त है। इसके केशविन्यास और तदुपरि बंधी हुई लड़ियां व ऊपरवर्ती जूड़े के चतुर्दिक अलंकार [ ५९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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