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________________ शती की है। इसका शिखर चौरस है व चारों ओर चमुख भगवान विराजमान करने का स्थान है। यहाँ एक मूल प्रतिताविहीन परिकर मांधाता (निमाड़) से प्राप्त हुई है. जिसमें सं० १२४१ का अभिलेख है। इसमें विद्याधर यक्ष, चामरधारी पुरुष और भक्तजन बने हुए हैं। सं० ११८८ की वनी एक शांतिनाथ प्रतिमा विक्टो. रिया व अलवर्ट म्यूजियम में है। वैकुगम्-यहाँ के जैन मन्दिर में ७ खड़ी कांस्यमूर्तियाँ हैं जिनमें पार्श्वनाथ के सिर पर सर्पफण है। इनमें घंघराले बाल. आँखें व मुखाकृति में रुक्षता है । आकोटा की प्रतिमाएं: आकोटा (गुजरात) से प्राप्त धातु-प्रतिमाएं बड़ौदा संग्रहालय में प्रदर्शित हैं जिनका परिचय दिया जा रहा कायोत्सर्ग ध्यान की उच्चतम अवस्था को उजागर करती है। भगवान के ललाट पर गोल टीकी दी हुई है। प्रभु के भुजबंद स्कंध प्रदेश के नीचे पहनाये हुए हैं जिनके मुकुट की गवाक्ष शलो मणिमालावत् परिल क्षत होती है । कम्वुग्रीव प्रभु के गले का हार पर्याप्त विशाल है और हाथों में वलय पहने हुए हैं। कटिमेखला से कसी हुई धोती नीचे तक अयी हुई है। धोतो के सुघड़ सल स्पष्ट हैं और मध्यभाग में अलंकृत पर्यसत्क बंधा हुआ है । धौती की चुन्नटें वल्ली जसी लगने लगी हैं। यह प्रतिमा पूर्व-गुप्तकाल की कला का उत्कृष्ट नमूना है। ३. जीवन्त स्वामी-यह प्रतिमा भी भगवान महावीर के जीवनकाल में वनी प्रतिमाओं के अनुधावन में बनी जानेवाली प्राचीन और कलापूर्ण गुप्तकालीन प्रतिमा है । जीवन्तस्वामी की इस प्रतिमा के दोनों हाथ खण्डित हैं। १. ऋषभदेव--यह कांस्य-प्रतिमा खङ्गासन मुद्रा में अत्यन्त सुन्दर, ७६ से० मी० ऊंची और कलापूर्ण है। एक हाथ इसका सर्वथा और आंशिक रूप में अन्यत्र भी जर्जरित-क्षतिग्रस्त हो गया है। पादपीठ तो सर्वथा लुप्त है पर इसके नीचे तक अधोवस्त्र-धोती धारण किया हुआ है। इस गुप्तकालीन कंबुग्रीव और क्षीण कटिप्रदेश वाली प्रतिमा के नेत्र रजत-मंडित और अधर ताम्रवर्णी हैं । स्कंध प्रदेश पर लटकती केशराशि वाली इस आजानुबाहु प्रतिमा को उत्तर भारत की सुन्दरतम् प्रतिमा कहा जा सकता है। यह प्रतिमा पाँचवीं शती ४. जीवन्त स्वामी-यह प्रतिमा एक अभिलेख युक्त ऊँचे पाद-पीठ पर खङ्गासन ध्यानावस्थित है। इसके आसन पर खुदे लेख से यह विदित होता है कि चन्द्रकुल की नागीश्वरी श्राविका का यह देव निमित्त दान है। इसकी लिपि ई० सं०५५० के आसपास की है । इस प्रतिमा के माथे पर मुकुट, कान में कुण्डल, वाये हाथ में ऊंचे भुजबन्द व कलाई पर वलय है । दाहिना हाथ सर्वथा लुप्त है। कटिमेखला धोती के ऊपर धारण की हुई है। मुखमण्डल के पृष्ठ भाग में सूपाकृति किनारीदार प्रभामण्डल बना हुआ है। इनका मुकुट त्रिकूट है और पहले वाली प्रतिमाओं की भाँति ऊपरी भाग में चौरस टोपी जसा आकार नहीं है । धोती की लांग मध्य में गोमूत्रिका कृति वाली है। ५. ऋषभदेव प्रतिमा-यह प्रतिमा कायोत्सर्ग-खङ्गासन मुद्रा में अवस्थित है । इस २५ से० मी० ऊंची प्रतिमा के ने चे ३३४९ से० मी० परिमाण का पादपीठ है जिसके उभय पक्ष में निकली हुई नालयुक्त कमल पर दाहिनी अर यक्ष एवं पार्श्व में अम्बिका देवी विराजमान हैं । देवी के २. जीवन्त स्वामी-यह प्रतिमा कुछ क्षतिग्रस्त हो। जाने पर भी अत्यन्त सुन्दर है। मस्तक पर मुकुट और उसके पीछे चौरस टोपी जैसा परिधान है जिस पर गोल वातायन अलंकृति युक्त है ! ललाट के ऊपरी भाग में मस्तक के केश मुकुट के नीचे दिखाई देते हैं और स्कंध प्रदेश पर वालों की कुण्डलित लटें तीन भागों में बिखरी हुई हैं। भगवान महावीर के अद्धोंन्मिलित नेत्र, नासाग्र दृष्टि ५८] For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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