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________________ भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ द्वितीय भाग में भानपुर (उड़ीसा) के कुछ धातु निर्मित चौबीसी आदि के चि प्रकाशित हैं । प्रस्तुत चौबीसी प्रतिमा बड़ी ही विलक्षण और अद्वितीय विधा वाली है। कटक, भुवनेश्वर मार्ग पर नदी की मिट्टी खोदते समय नकुलभट्ट खंडायत को पाँच प्रतिमाओं की प्राप्ति हुई थी । उसने एक मंदिर बनवाकर उसमें उन्हें विराजमान कर दिया है । (२) वृक्ष की शाखा को पकड़ कर खड़ी अशोका या मानवी देवी जिसके आसन पर रीछ अंकित है । (३) सप्त फणा पत्रीयुक्त पार्श्वनाथ । (8) सर्प लांछन से अंकित पादपीठ पर खड़े पार्श्वनाथ । (५) कमल पुष्पयुक्त पादपीठ पर कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ी आदिनाथ की मूर्ति । इनमें आदिनाथ प्रतिमा उत्कृष्ट कला-कौशल का उदाहरण है। सुन्दर जटाजूट मण्डित प्रभु की प्रशांत मुखमुद्रा और शरीर का सौम्य गठन प्रेक्षणीय है । उस पर उत्कीणित अभिलेख के अनुसार यह श्रीकर संज्ञक व्यक्ति द्वारा निर्मापित है। ये प्रतिमाएं कला की दृष्टि से दशवीं शताब्दी की हो सकती हैं जिनका अध्ययन होना आवश्यक है।। इन प्रतिमाओं के मध्यवर्ती चतुर्विशति पट के मध्य गोलाकार भाग में १२. ऊपर ८ और चारों कोने में ४ कुल २४ मूर्तियाँ हैं। इनके अतिरिक्त नीचे के भाग में पार्श्वनाथ और शीर्षस्थ महावीर स्वामी की प्रतिमा है। देनों ओर सिंह स्तम्भ पर तोरण अवस्थित है। निम्नभाग में देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ परिकर में अवस्थित है। यह मूर्ति सं० १०९० की निर्मित है। इसके साथ दो-दो खङ्गासन प्रतिमाएं हैं जिनमें एक पार्श्वनाथ और तीन ऋषभदेव भगवान की है। इनकी ऊँचाई ६ इंच की दो, ९इंच की एक और एक ११च की है । ग्यारह इच वाली कमलासन पर खड़ी ऋषभदेव प्रतिमा में चतुर्दिक नौ ग्रह बने हुये हैं, वह प्रतिमा भी अपने ढंग की एक ही है। उड़ीसा के कटकपुर से प्राप्त ऋषभदेव भगवान की एक सुन्दर प्रतिमा कलकत्ता के इण्डियन म्यूजियम में प्रदशित है। यह कांस्य प्रतिमा सुन्दर पादपीठ पर कमलासन के ऊपर अवस्थित है। पादपीठ पर मध्य भाग में वृषभ ( लांछन ) बैठा हुआ है । प्रभु की कायोत्सर्ग मुद्रा में हाथों की अंगुलियां देह का स्पर्श कर रही हैं । मस्तक पर ऊँचा उष्णीष और स्कंध प्रदेश पर दोनों ओर तीन-तीन लटों में केश-राशि फैली हुई है। प्रतिमा के पादपीठ पर म्यूजियम का क्रमांक १२४३ लिखा हुआ है। दूसरी चन्द्रप्रभ प्रतिमा आशुतोष संग्रहालय में है जो ११वीं शती को मालूम देती है ! भानपुर के पास दो मील पर प्रतापपुर गाँव में भी प्रतिमाएं निकली थीं। उड़ीसा में जैन प्रतिमाएं प्रचुर परिमाण में प्राप्त हैं । कटक के चन्द्रप्रभ जिनालय में एक ऋरमदेव भगवान की धातुमय खङ्गासन प्रतिमा बड़ी भव्य है । प्रभु की केश-राशि उभय भाग में तीन-तीन लटों में प्रसारित हैं। चौरस सिंहासन के गोल कमलासन पर प्रभु खड़े हैं । उभय सिंहों के मध्य में कुम्भ रखा हुआ है ओर आगे निकले हुए अलग पाये पर लांछन स्वरूप वृषभ बैठा हुआ है। छठी शताब्दी के शैलोद्भव राजा धर्मराज के बानुपुर ताम्रलेख में उनकी रानी कल्याण देवी द्वारा एक शतप्रबुद्ध__ चंद्र नामक जैनमुनि को कुछ भूमि देने का उल्लेख है । (बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रन्थ. पृ० १७०) उड़ीसा के राजकीय संग्रहालय में, वानपुर से प्राप्त कांस्य- प्रतिमाओं का महत्वपूर्ण संग्रह है। उनमें (2) आम्रवृक्ष के नीचे बैठी, गोद में बालक को लिये हुए अम्बिका । अम्बिका---एलोरा की कांस्य-मूर्ति खड़ी अम्बिका के पास में एक वालक खड़ा है । द्विस्तरीय सिंहासन पर गोल कमलासन है । नीचे बालक बगल में खड़ा है । झवारी-मन्दिर कांस्य-जिनालय अनुकृति लगभग ११वीं [ ५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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