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________________ आभास करा देता है । नौवीं-दशवीं शताब्दी की हैं। कन्धे पर केशावली और मस्तक पर जट-किरीट है, चौकी पर बड़ा वृषम है और कमलासन पर आजानुबाहु प्रभु की प्रतिमा है । बंगाल के चौबीस परगना में नलगोड़ा एक स्थान है जहाँ तीर्थंकर नेमिनाथ स्वामी की अधिष्ठातृ यक्षी अम्बिका की सुन्दर कांस्य प्रतिमा प्राप्त हुई है । यह प्रतिमा धनुषाकार फैले हुए वृक्ष के निम्न भाग में कमलासन पर अवस्थित है जो एक सुन्दर जालीदार पादपीठ पर है जिससे आम्र वृक्ष का तना वाम पाव से निकला है। इसके पास भगवती अम्बिका का वाहन सिंह बैठा हुआ है। देवी के वायें गोद में बालक है जिसका दाहिना हाथ देवी के स्तन पर है. दाहिनी ओर दूसर। बालक निरावरण दशा में पादपीठ पर खड़ा है । देवी के हाथों में चूड़ियाँ, पैरों में नुपूर और गले में हार व कानों में कर्णफूल हैं । गोड़े से थोड़े नीचे साड़ी के गोल सल स्पष्ट परिलक्षित हैं । क्षीण कटिप्रदेश और कृशोदर पर साड़ी लपेटी हुई है। यह प्रतिमा दशवीं शती की प्रतीत होती है। सिरपुर की आदिनाथ प्रतिपा : स्व० मुनिश्री कान्तिसागरजी ने अपने मध्यप्रदेश प्रवास में अनेक उपलब्धियाँ की थी जिनमें दो धात-प्रति- . माएँ वे लगभग ४० वर्ष पूर्व कलकत्ता लाये थे। इनमें एक तो वौद्ध देवो तारा की प्रतिमा अनुपम कला की साकार रूप थी, दूसरी भगवान ऋषभदेव की। उस समय विस्तृत अध्ययन कर लेख प्रकाशित किये गये थे। उन्हें वे प्रतमाएँ सिरपुर के महन्त मंगलगिरि से प्राप्त हुई थीं। मैंने पहले उनसे बीकानेर में रखने की बात की थी पर पुरातत्वाचार्य श्री जिनविजय जी के कलकत्ता पधारने पर उन्होंने उन्हें समर्पित कर दी। जिनविजय जी ने बौद्ध प्रतिमा भारतीय विद्या भवन में दे दी। कुछ वर्ष पूर्व जयपुर म्यूजि. यम के क्युरेटर श्री सत्यप्रकाश जी ने मुझे बतलाया कि वह प्रतिमा तो अमेरिका में देखी थी, यह तो हुई वौद्ध प्रतिमा की बात । दूसरी आदिनाथ प्रतिमा मैंने कलकत्ता में श्री राजेन्द्रसिंह जी सिंघी के पास देखी । ___ मध्य प्रदेश के सभी मन्दिरों में विविध कलापूर्ण धातु प्रतिमाएं संप्राप्त हैं। इन सब में आरवी के सैतवालों के मन्दिर की धातु-प्रतिमा अपना विशिष्ट महत्व रखती है । प्रान्त की अन्य प्रतिमाओं की भाँति यह भी अर्द्धपद्मासन मुद्रा में कमलासन पर स्थित है । पश्चात् भाग में लगा हुआ तकिया एक जैनव स्तु बाह्यविधा है । तकिये के उभय पक्ष में ग्रास एवं ऊपर के मकरमुख बड़ी ही बारीकी से अभिव्यक्त है । मूल प्रतिमा के छत्रत्रय के चतुर्दिक पीपल-पत्तियों का अंकन है । यह चौबीसी है। सभी छोटी प्रतिमाएं भी अर्द्धपद्मासन मुद्रा में हैं। मूल प्रतिमा के उभयपक्ष स्थित चामरधारी और चरणों के निकट स्थित देवव चतुभुजी देवीभी अर्द्ध पद्मासन स्थित है और विविध अलंकार व आयुधों से परिपूर्ण हैं । सारी प्रतिमा चार खम्भों पर स्थित है । इस प्रतिमा में विभिन्न आकृतियाँ उत्कीणित हैं। इसका ढांचा एक मन्दिर के शिखर का सिरपुर से प्राप्त प्रतिमा दशवीं शताब्दी की मालूम देती है। यह ताम्रवर्णी प्रतिमा कला की दृष्टि से अपना विशेष महत्व रखती है। मध्य कमलासन पर युगादिदेव विराजमान हैं जिनके स्कंध प्रदेश पर केशावली प्रसारित है । पृष्ठ भाग का अलंकृत प्रभामण्डल पर्याप्त बड़ा और कला पूर्ण है। भगवान के कमलासन पर वृषभ लांछन स्पष्ट परिलक्षित है और निम्न भाग में नवग्रहों की बड़ी मूर्तियाँ विराजमान हैं। अनेक मूर्तियों की भाँति नवग्रह कहलाने वाली मूर्तियाँ आठ ही पायी जाती हैं क्योंकि वस्तुसार के अनुसार राहु-केतु को एक ही मान लिया गया है । दाहिनी ओर अम्बिका देवी है जिसकी बाँयीं गोद में व दाहिनी और सिद्ध-बुद्ध बालक विद्यमान है। इनके दाहिनी ओर परिकर के निकले टोड़े पर यक्षराज विराजमान हैं। भगवान के वामपार्श्व में शासन देवी स्थित है। ५६ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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