SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भांडागार तहखाने बैठने की उतरी आदि चीजें आती है । किले में स्थान-स्थान पर तोपें पड़ी हुई हैं। गुप्त गंगा जिसे कहते हैं गुफा के अन्दर खूब नीचे उतरने पर एक गज लम्बा चौड़ा खड्डा है, जिसका जल अज्ञात मार्ग से परिपूरित रहता है। जल व स्वादिष्ट और स्वच्छ है । गुफा में हिन्दु धर्म मान्य देव मूर्तियाँ भी प्रतिष्ठित हैं । गणेशजी के मन्दिर के पास से एक दूसरा मार्ग जाता है। तीन दरवाजों से निकलने पर बाहर पहाड़ी के ऊपर एक महादेवजी का मन्दिर है जहाँ शिवलिंग के ऊपर निरन्तर पहाड़ झरने का स्वच्छ जल टपकता रहता है। इसके सन्मुख एक पाषाण का मस्तक रखा हुआ है । कहा जाता है कि यह हम्मीर का मस्तक है। प्रवाद है कि हम्मीर जब सारी सेना को परास्त कर उनके झण्डों को छीन कर ला रहा था तब उसकी ५०० रानियाँ शत्रु के झण्डों को दूर से देखकर अपनी पराजय के भ्रम से दारू विछे स्थान में आगी लगाकर भस्म हो गयीं। इस घटना से विजय का हर्प शोक रूप में परिणत हो गया और दुःखी हमीर ने महादेवजी के सम्मुख जाकर तलवार से अपना मस्तक उड़ा दिया। तीन बार मस्तक वापिस जुड़ गया। चौथी वार फिर काटने पर शान्त हो गया । हमीर की मृत्यु ज्ञातकर शाही सेना ने दुर्ग को तहस-नहस कर अधिकृत कर लिया। कह जाता है कि हमीर के पास पारस पत्थर ( मणि ) था जिसके प्रताप से वह लोहे का सोना बना लेता और धन, धान्य, सेना से समृद्ध और शत्रुओं द्वारा अजेय रहता था। दुर्ग पर इतस्ततः घूमते-फिरते हम लोग जैन मन्दिर में पहुँचे । मन्दिर खूब विशाल है। वाह्य भाग के चौक में कुछ कोठरियां बनी हुई हैं एवं दीवाल में एक श्वेताम्बर मूर्ति भी श्वेत पाषाण की खड़ी हुई लगी है। उसी के पास एक परिकरका ऊपरी हिस्सा तोरण रखा हुआ था मूल मन्दिर विशाल और पापाण निर्मित शिखर वृद्ध है। गर्भगृह में तीन मूर्तियों श्वेताम्बर हैं. अवशिष्ट पापान व धातु की सभी दिगम्बर है। यह मन्दिर Jain Education International दिगम्बर जनों के अधिकार में है। यद्यपि यहाँ जैनों की बस्ती नहीं हैं परन्तु सेरपुर, जो मिसरदरा से १ मील की दूरी पर है, से पुजारी आकर पूजा कर जाता है। मन्दिर अच्छी हालत में है। मन्दिर के बाह्यभाग में एक कोठरी में तलघर-सा बना हुआ है, कूड़ा कर्कट निकाल कर देखने से पता लगे कि इसमें क्या है ? इस मन्दिर के निर्माता का कोई शिलालेख दृष्टिगोचर नहीं होता अतः निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि यह मन्दिर किसने बनाया है । साधन एवं अवकाशाभाव से प्रतिमाओं के समस्त लेख नहीं लिये जा सके। जो लिये गये, यहाँ प्रकाशित किये जाते हैं १ - श्री सुमतिनाथ जी क. सं० १४९४ श्रीमाल ज्ञातीय सा० वीसल मा० रमणा पुत्र सं० महणसिंहेन भा० भूतसिकि पुत्र तिहुणावाला हिमा तोलादि कुटुम्व युतेन स्वकारिसप्रासादे श्री सुमतिनाथ वित्र का प्र० तपः गच्छे श्री सोम सुन्दर सूरिभिः । ख. श्री सुमति सा० महणसी. २ - श्री शीतलनाथजी क. संवत् १६६७ वर्षे माधरित ६ गुरौ सङ्घपति भला तस्य भार्या मेलसिरि तत्पुत्र धर्मदासादौ गोत्र तस्य भारज्या धरमसिरी तत्पुत्र सोमजी शिवजी प्रतिष्ठापित श्री शीतलनाथ दिवं महोपाध्याय श्रीविवेक गणीनामपदेशात् कारितं प्रतिष्ठित श्री तपागच्छाधिराज भट्टारक श्री विजयसेन सूरिभिः आचार्य श्री विजयदेव सूरि प्रभृति साधसंसेदित चरण कमलेः पं० महान गणिना लेखि ख. श्री आगरानगर वास्तव्य सङ्घपति श्री चण्डपालेन प्रतिष्ठा कारित । ३-धातु की पचतीर्थी पर सं० १४०४ उपकेशगच्छे ककुहाचार्य संताने चिंचटगोत्रे वेसटान्वये सा० श्रीसूरा भा० सलखणदे पु० समुद्रसीहेन पितृश्रेय से श्री आदिनाथ का० प्र० श्री कक्कसूरिभिः । [ 89 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy