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________________ जयपुर राज्य की स्कीम है, जिसके फलीभूत होने से बने हुए हैं। चार-चार दरवाजों को पार करने पर दुर्गखेती-बाड़ी तथा इतर उद्योग - धन्धों में उन्नति हो। प्रवेश होता है। प्रत्येक प्रतोली का द्वार लोहे के मोटे सकती है। पतरों से जड़ा हुआ है. जिन पर ताम्र लेख खुदे हुए हैं। उपर्युक्त रणथंभौर दुर्ग देखने की अभिलाषा कुछ ताम्रपत्रों में प्रतोली के भव्य द्वार बनाने वाले शासकदिन पूर्व कोटा में विराजित जैनाचार्य श्री जिनरत्न किलेदार आदि एवं कारीगरों के नाम हैं. जिनमें क्लेिदारों सूरिजी. श्रीमणिसागरसूरिजी महाराज के वन्दनार्थ जाकर के नाम प्रायः दिगम्बर जैन धर्मावलम्बी श्रावकों के हैं ।* आते हुए पूर्ण हुई। सवाई माधोपुर से ४ कोस ताँगे किले में आजकल कुल ५-१० घरों की बस्ती है । कुछ में जाने पर 'मिसरदरा' के पास हमें ताँगा छोड़ कर पैदल महलाने, तरिये, मन्दिर, खण्डहरादि के अतिरिक्त अव जाना पड़ा। पहाड़ी रास्ता बड़ा सुन्दर है। उपर्युक्त बाजार इत्यादि कुछ भी नहीं रहे। बाजार का स्थान जहाँ दरवाजे में प्रवेश करते ही बड़े-बड़े जलाशय आते हैं. फिर बतलाया गया वहाँ सकड़ी ग़ली के उभय पक्ष में पत्थरों के ऊँचे-नीचे पहाड़ी रास्ते को तै करने पर मार्ग के बाँयी तरफ ढेर के अतिरिक्त कुछ भी शेष नहीं है। एक अत्यन्त प्राचीन मुगलकालीन मस्जिद आती है, जिस पर लोहे विशाल और ऊँची छतरी के पास से है कर जाने से दाहिनी के पात पर पारसी अभिलेख उभरे हुए अक्षरों में उत्कीणित ओर दो मन्दिर और वायें तरफ महलातों में जाने का मार्ग हैं। आगे जाने पर एक 'दरवाजा आता है। मसरदरे है, जहाँ सिपाही पहरेदार खड़े रहते है और दर्शनीय कुछ के मार्ग में भी कुछ कब्रिस्तान 'आदि बने हुए हैं। यहाँ भी नहीं है। रणथंभौर में श्री गणेशजी का मन्दिर अत्यन्त के पत्थर चित्र-विचित्रित नाना रंग के हैं। हरे रंग के बड़े प्रसिद्ध है। सारे राजस्थान में विवाहादि के अवसर पर जो सुन्दर पाषाण दृष्टिगोचर हुए जो बड़े चिकने हैं। कहा विनायक का गीत प्रारम्भ में गाया जाता है—'रणतभंवर जाता है कि मुगसिलिया पाषाण (मूंग के रङ्ग का ) यहीं सुआयो विनायक' यह इसी रणथंभौर से सम्बन्धित है। है जिसे पुष्करावर्त मेघधारा भी जलाद्र नहीं कर सकती। 'रणतभंवर गढ़ राजस्थानी में अपभ्रष्ट है और संस्कृत में यहाँ के पत्थरों की सवाई माधोपुर में खरल बनती है उसे 'रणस्तंम्भपुर-दुर्ग' कहते हैं। जो बड़ी सुदृढ़ होती है। रणथंभौर दुर्ग पहाड़ी के ऊपर गणेशजी का मन्दिर विशाल सादा और अच्छि स्थिति और नीचे दो भागों में बसा हुआ है । इस दरवाजे में प्रवेश में है। प्राचीन कहलाने पर भी शिल्पकोरणी का नामों करने के पश्चात् पहाड़ी के नीचे की बस्ती आती है। रास्ते निशान भी नहीं है। देखने में बिल्कुल नवीन प्रतीत होता के वायीं ओर जोगी का महल और २-३ छतरियाँ व खण्डहर है। गणेशजी की मूर्ति अवश्य प्राचीन है जो पहाड़ में आते हैं | आगे जाने पर दुर्ग-द्वार के बाहर कुछ मकानों वना हुआ केवल गणेशजी का मस्तक मात्र है। के खण्डहर, कुंआ, गरुड़जी की मूर्ति आदि दृष्टिगोचर होते उसी के सन्मुख मन्दिर निर्माण कर दिया गया है। हैं। किले के मकानात प्रतोली और प्राचीर बड़े ही सुदृढ़ आगे जाने पर और गुफामें उतरने पर गुप्त गङ्गा, हम्मीर के *इन लेखों में से एक लेख नोलखा दरवाजा का यहाँ दिया जाता है: श्रीरामजी श्रीगणेशायनमः ॥ श्री महाराजाधिराज महाराजा श्री श्री श्री श्री श्री सवाई जगत सिंहजी औहचेयत माम समस्त किलेदार साह ज्ञानचन्द कासलीवाल साहालि छै श्री राम खीदुका मुत्सदी किला रणथंभोर का दरवाजा नोलखानीचला कै किवाड़ा की जोड़ी नई वणाय चढ़ाई मिती फागण सुदि ५ शनीश्चरवार संवत् १८६४ काम उसतो खाती खांडे । [४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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