________________
४-दिगम्बर जैन धातुप्रतिमा के नीचे
चौकीपर चारों तरफ संवत् १५३० वर्षे माघ सुदि ११ शुक्र श्री गोपाचल दुर्गे महाराजा श्री की निसिंघदेव काष्टासंघे माथुरान्वये पुष्करगणे मट्टारक श्री हेमकीर्ति तत्प? भट्टारक कमलकीर्ति देवा तत्पट्टे भ० शुभचन्द्रदेव तवाम्नाए अग्रोतकान्वये गर्गगोत्रे सं० दो १ भार्या लाति तत्पुत्राः पञ्च समनाजी कृताजी दे"मनसिरि कर्मणि नाम्ने तत्पुत्र पुः सं० नराजतद्यार्या घनसिरि तत्पुत्रो द्वितीय ( इत्यादि )
कतिपय मूर्तियाँ सं० १५४७ ज.वराज पापरीवाल प्रतिष्ठापित एवं अन्य दिगम्बर लेखों वाली हैं जिनके लेख अवकाशाभाव से नहीं लिये जा सके। धूप काफी चढ़ चुकी थी, गरमी की अधिकता के कारण हमलोग शीघ्रता से निकल कर जिस मार्ग से गये, वापिस मसरदरा आ पहुंचे। यहाँ हमारा ताँगेवाला तैयार था और वह सेरपुर के मन्दिर का, जो सड़क से थोड़ी ही दूर पर है. मार्ग बतलाकर छाया में ठहर गया। सेरपुर का मन्दिर भी जंगल में ही है। 'खीमसी भाग्योदय काव्य' ( कविरत्न कुशल कृत) के अनुसार यह रणथंभौर का शाखापुर था जहाँ मन्त्रीश्वर खीमसी ने नन्दनवन के सदृश सुन्दर बगीचा बनवा कर उसमें स्वच्छ जल का कुँआ निर्माण कराया था। यहाँ के मन्दिर पर "दिगम्बर जैन अतिशयक्षेत्र सेरपुर" का पाटीया
लगा हुआ था। मन्दिर के दर्शनार्थ कतिपय यात्री आये हुए थे, जो बाहर बनी हुई कोठरियों में ठहरे हुए थे। मन्दिरजी में बहुत-सी सुन्दर दिगम्बर जैन प्रतिमाएँ विराजमान हैं, पर आश्चर्य है कि प्रवेश करते ही सामने की ओर चौकी पर महादेवजी, गणेशजो, माताजी, सतीजी आदि । सभी जैनेत्तर हिन्दू देव-देवियाँ विराजमान हैं। यह बात मेरी समझ में नहीं आई कि कट्टर दिगम्वर बन्धुओं ने इन्हें कैसे निमन्त्रण दिया? यदि ये बिना निमन्त्रण ही पुजारो आदि के दिये हुए मार्ग से आ गये हों तो इनकी सभा को विसर्जित कर अपने अपने मुकाम भेज देना चाहिए, अन्यथा कभी साम्प्रदायिक समस्या उपस्थित होने का अवसर आ सकता है।
हमारी रणथंभौर-यात्रा राह चलते घन्टे दो घन्टे की थी। अतः न तो सब दर्शनीय स्थान देखे गये और न साधनाभाव से लेखों की ही नकल की जा सकी। दिगम्वर समाज का तोर्थ अतिशयक्षेत्र सेरपुर है अतः वहाँ जाने वाले इतिहास प्रेमी यात्रीगण जिनमन्दिरस्थ समस्त लेखों का संग्रह प्रकाशित करने के साथ-साथ किले के द्वारों पर लगे लेखों को जो खास दिगम्बर श्रावकों से सम्बन्धित हैंअवश्य संग्रह करें एवं दिगम्बर जैन साहित्य में रणथंभौर के जो विवरण प्राप्त हों उन्हें प्रकाश में लाने के लिए विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया जाता है।
४२]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org