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________________ में राजा विट्ठलदास गौड़को यह जागीर में मिला पर औरङ्गजेब ने वापिस ले लिया। तत्पश्चात् मुगल सल्तनत की कमजोर हालत में मराठों के आक्रमण से रक्षा करने में असमर्थ हो किलेदार ने जयपुर वालों को बिना शर्त दुर्ग सुपुर्द कर दिया और मराठों से रक्षा पायी। तवसे यह अजेय दुर्ग जयपुर राज्य के आधीन है। मेरी रणथंभौर यात्रा जैन साहित्य से रणथंभौर का पुरना सम्बन्ध है। १२ वीं शती में हरिसउरगच्छीय राजा कर्ण से मलधारिविरुद-प्रप्त श्री अभयदेवसूरि के आणा लेख से प्रथम पृथ्वीराज ने अत्रस्थ जिनालयपर स्वर्णमयध्वजदण्ड चढ़ाये भारतवर्ष के सुदृढ़ और अत्यन्त सुरक्षित प्राचीन थे जिसका उल्लेख पत्तनभाण्डागारीय ताड़पत्रीय दुर्गों में रणथंभौर एक विशिष्ट, महत्वपूर्ण एवं इतिहास पद्मदेवकृत 'सद्गुरू पद्धति में इस प्रकार है प्रसिद्ध दुर्ग है। दूसरे अनेक दुर्गों की भाँति इसका रणथंभपुरे आणालेहेणं जस्स संभरिंदेग। निर्माण भी चौहानों ने करवाया था। शरणागत-प्रति हेमधयदंडमिसओ निच्च नच्चाविया कित्ती ||३|| पालक राव हमीर का हठ * प्रसिद्ध है। उस प्रतापी श्री चन्द्रसूरि-कृत 'मुनिसुव्रतचरित्र' में निम्नोक्त गाथा और शक्तिसम्पन्न नरेश्वर ने अपनी राज्य, ऋद्धि इसी वृतान्त की पुष्टि करती है एवं प्राण तक गंवाये परन्तु शरणागत चार मुगलोको पुहवीरायेण सयंभरी नरिंदेण जस्स लेहेण । सुलतान के सुपुर्द न कर आर्य संस्कृति के गौरव की रणखंभउरजिणाहरे चडाविया कणयकलसा ॥ सुरक्षा की। हमीर ने सुलतान को परास्त कर दिया पर यवनों के भावी उत्कर्ष-योग से रानियाँ जलकर इसी प्रकार विजयसिंहसूरि ने 'धर्मोपदेश विवरण' में भस्म हो गयीं, तथा हमीर का सारा उत्साह-शौर्य उल्लेख किया है किअस्तंगत हो गया। वीरभूमि रणथंभौर पर यवनों का यस्य संदेसकेनापि पृथ्वीराजेन भूभुजा। अधिकार हो गया। तदनन्तर मालवा मेवाड़ के शासकों रणस्तंभपुरे न्यस्तः स्वर्णकभो जिनालये ।। के अधिकार में रहने के अनन्तर फिर मुसलमानों के इन अवतरणों में जिस जिनालय का उल्लेख है, अधिकार में आ गया। बादको चौहानों की सहायता से सम्भवतः मुसलमानी शासन में वह नष्ट हो चुका होगा। हाडा राजपूतोंने मुगल किलेदार जुझारखाँ से किला इसके बाद भी रणथंभौर से जैनाचार्यों का सम्बन्ध बराबर छीनकर राव सुर्जन हाडा को सौंपा। सम्राट अकबर रहा है और श्री नयचन्द्रसूरिजो ने हम्मीर महाकाव्य ** ने इसे युद्ध में विजय न कर सकने पर ५२ परगनों की रचना की, जिसके वर्णनों से ग्रन्थकार का रणथंभौर के बदले राव सुर्जन से रणथंभौर ले लिया। सं०१६८८ से सम्बन्ध होना फलित है। * "सिंह-विषय सत्पुरूष वचन फेल फलै इकबार । तिरिया तेल हमीर हठ चढ़े न दूजी बार ॥" ** देखिये नागरी प्रचारिणी पत्रिका वर्ष १२ अङ्क ३ और वर्ष १३ अंक ३ में "हमीर काव्य" नामक जगनलाल गुप्त का लेख । [३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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