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________________ जवानी में लाभू बाबो धणो तागतवर हो। एक वार बडा दादाजी दानमलजी री हवेली चिणीजती ही जद पथरांरी रांस चढ़ावगवासतै हमालांनै बुलाया। दस-दस मणर भारी एकलिया देखने हमालां जीभ काढ दी। जद सेठां लभू बाबा नै बकारियो। लाभू बाबै अकेले वै दस-दस मगरा अॅकलिया चढा दिया। जतियांरी हालत देखरै लाभू बाबो कह्या करतो केइ जती सेवड़ा सिर मंडा । करमां-री गतसू हुआ मुंडा ॥ आयो । जीमतो हुतो तो थाळी छोड किनारे हाथ धोयनं जा हाजर हुतो। कैई काममें रूधियोड़ो हुतो तोई आ कदेई का कैवतो नी कै फलाणो काम करू' हूँ। एक 'आयो' शब्द हीज सदा मूंढासू नीकालतो। लाभू वावो कैंवतो-'हं फलाणो काम करूहूं' इयांन कणो एक तरांसं उत्तर देणो है। काम रो उत्तर देणो लाभू बावो जाणतो ही कोनी हो। टावरांनै, विशेषकर म्हां तीनांनै-काकोजी मेघराजजी, काकोजी अगरचंदजो और मनै, बड़ी हीयालीसं राखतो। एकने गोदीमें, दूजानै खांधा माथै अर तीजानै मगरां माथै राखियां काम करतो तो। म्हांन घणा ओखाणा अर दुहा सुणावतो। सिंझ्या पड़ती जद म्हे लाभ वावान वात केवण वासतै पकड़न वैठाय लेता। बाबो म्हारी फरमास अर रूचि मुजव वातां सुणावतो-कदे रामायणरी, कदेई महाभारतरी, कदेई इतिहासरी, कदेई धूजीपी, कदेई प्रहलादरी. कदेई नरसीजीरा माहेरारी। लाभू बाबो रामरो भगत, कर्तव्यशील और निर्लोभी हो। शास्त्रां कथावारा आदर्श बाबै आपरा जीवण में उतारिया । दिन-रात, काम करतां बखत भी. मूंढामें राम रौ नाव हरदम रैवतो काम करतो जांवतो अर भजन गावतो जातो। म्हारा घरसूं लाभू बावाने दो रुपिया महीनो मिलतो। भला-भला साहूकारां पनरै रुपिया महीनों नै रोटी-कपड़ो धामियो पण लाभू बाबै दूजै घर नौकरी नहीं करी स नहीं करी। लाभू बाबो प्रेम रोमखो हो, टकारो लोभी को हो नी। लाभू बाबो कई भेख, जीमण, जीवतखर्च आपरा नै आपरी सामणरा करिया। हिन्दू और जैन तीरथारी जात्रावां करी । और मरतो सईकडू रुपिया आपरी लुगाई मोलार वासतै छोडग्यो । दो-च्यार रुपिया कमावण आळो आदमी किण भाँत सुखी जीवण विता सके. लाभ बाबो इणरो प्रतख उदाहरण हो। लाभू वावै आपरा जीवणरा शेष दिन गांव में गालिया। माँचा माथै बैठो-सूतो हरदम भजन करतो रैवतो। म्हों टाबरौं नै देखण सिवाय कैई वात-री मन में ई कोनी ही । पिताजी मिलण वासतै गाँव गया जद उणाने आया सुणताँ पाण उभाणे पगाँ सौ पाँवडाँ साम्हो आयो। लोगाँने घणो अचरज हुयो के आज बाबारा बूढा पगाँमें इती शक्ति कठासू आयगी। लाम बाबोन स्वर्गवासी हुयाँ आज घणा वरस हुग्या है पण म्हारा मनमें बाबारी अर बाबारा गुगाँरी याद आज ताणी ताजी है। ३७] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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