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वगेरा शास्त्रांरा मोटा पिंडत हा। लाभू वा टावरपणांमें उगां कन शास्त्रांरो ग्यान सीखियो । टावरपणांमें सीखियोड़ा इग ग्यानसं लाभू व.वो बिना पढियाँ हीज पिंडत हुग्यो हो। उगनै शास्त्रां और पुराणां तथा इतिहासरी कुण जग कित्ती वातां याद ही। लाभू वावो मणियोड़ो . कोनी हो पण ग्यानमें वडा-वडा भणिंयोड़ान छेड़े वैसाणतो। लाभू बाबो कह्या करतो-नाणों अंटरो. विद्या कंठरी।
लाभू बाबो
लाभू-वाबो म्हारा घर में चाळीस वरसांसं कम को रह्यो नी। दो अकेलो जको काम करतो वो आज चार आदमियांसू कोनी हुदै। झांझरके च्यार बज्यां उठतो। उठनै भजन करतो। पर्छ सगळा घरमें बुवारी देतो. पाणी छाणतो, बिलोवणो करतो पोटा थापतो, ठाणारी सफई करतो, गायां-भैस्यां नै पागी पांवतो अर नीरो नाखतो। पछै दूजा काम करतो।
लाभू बाबो ठेटू वासिंदो किसे गांवरो हो आ तो मालम कोनी पण म्हारा बापोतो रा गांव डांडूसरमें परणियो हो जिणसुं म्हे तो उणने उठारो ही समझता। धोला मूंढारो छोरो, जवान, हो जदसं ही म्हारा घर में रेवतो आयो हो। हो तो बो दो रुपियाँरी महीनदार
पण म्हारा घररा लोगां उणने कदेई नौकर को समझियोनी। . कांई छोटा अर कांई वडा-सगला उगरो आदर करता ।
बड़ा लोग लाभू. लुगायां लाभूजी और म्हे टावर लाभू वाबो कर बतलावता। बाररा लोग लाभू वावे ने म्हारा ही घर रो आदमी समझता। लाभू बावो आप म्हारा घरनै ही आपरो घर समझतो। टावरपणां में म्हे उगरे सागै जीमियोड़ा हां।
म्हारै हुँडी-चिठ्ठीरो काम हुतो। लोट चाळिया कोनो हा. हजार रूपिया रोकड़ी लावण-लेज्यावण रो काम पड़तो। ओ सगलो काम लाभू बाबो करतो । भणियोड़ो अंक आखर को हो नी पण लावू रूपियांरो काम भुगता देतो और कदेई-अंक पईसारी ही भूल को पड़ी नी।
लाभू बाबो गोरा रंग रो, तकड़ा शरीर रो अर सपेत दाड़ीरो पैसो जवान हो। दोवटीरी जाडी धोती
और बंडी पैरतो। माथा माथे मुलमुल री पाग बाँधी राखतो। गळामें हरद्वारी कंठी और हाथमें काठरा मिणियारी माळा हर दम रेवती। सीयाळामें देसी जनरी कामळ ओढतो। ओ लाभू बाबारो पैरेस हो।
गांव-गोठरी बोरगत हुणैसू म्हारै अठे वारलो फेटो घणो हो। रोज दस-पांच आदमी आया-गया रैवता। उग दिनांमें कळरी चक्की तो ही कोनी. हाथरूं आटो पीसणो पड़तो। पीसारगियां आटो पीसती। लाभू बावे थकां ऐन मौके आटारा फोड़ा कदेई को देखणा पड़ता नी। बिना कह्यां आधी रातरा उठ-नै घमड़-धमड़ दंदां नाखतो दिन जगतो जद आधमण आटो त्यार ।
लाभू बाबो जातरो मंडीवाळ धनावंसी साध हो। बापरो नांव श्रीकिसनदास. काकारो बुद्धरदास अर भाईरो नांव आणदो हो। काको बुद्धरदासजी रामायण, महाभारत
लाभू बाबो काम करणनं सदा जाणे त्यार होज रेवतो। हरेक आदमीरो काम निःस्वार्थ भावसं करतो । घररो तो कांई, गवाड़रो भी कोई जणो काम वास्सै बकारतो तो उत्तर को देतो नी। हेलो सुणता पाण झट वोलतो
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