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प्रकाशित किया है, उसमें ८४ संख्या वाली कई जातियों ... प्रसंगवश चौरासी संख्या जिन-जिन अंकों के गुणन की सूचियां हैं।
द्वारा बनती है उनमें से कुछ संख्यायें बड़ी प्रसिद्ध हैं. (१) गुजरात देश की ८४ जातियाँ
अतः उनका भी उल्लेख कर दिया जाता है। (२) दक्षिण देश की ८४ जातियाँ
८४४१-८४ (३) दक्षिण देश की ८४ जाति कवित्त
४२४२८४ (४) मध्यदेश की ८४ न्यात
२८४३८७ (५) खंडेलवाल के ८४ गोत्र
२१४४८४ (६) खंडेल नगर के ८४ गाँव
१४४६-८४ (७) चौरासी गच्छ
१२४७=८४ (८) दत्तक पुत्र विषयक ८४ प्रश्न
इनमें से जैनधर्म में मुनियों के आहार सम्बन्धी ४२ इनमें से खंडेलवाल के ८४ गोत्रों के सम्बन्ध में कवि
दोष, पुण्य की ४२ प्रकृतियें, नामकर्म की ४२ प्रकृतियें वखतराम रचित 'बुद्धिविलास ग्रन्थ में विशेष परिचय पाया
___ एवं अश्व के ४२ भेद प्रसिद्ध हैं। जाता है।*
इसी प्रकार २८ संख्यक लब्धियें, मोहनीय कर्म की ३८. चौरासी चोहट्टों की एक सूची नाहर जी ने प्रकृतियें, नक्षत्र, अनुयोग, दाता के २८ गुण, मतिज्ञ न के प्रकाठित की है पर माणिक्य-सन्दर सरि के पश्वीचन्द्रचरित्र' २८ भेदों का विवेचन 'जैनसिद्धान्तबोलसंग्रह' भ०६ में है। ( सं० १४७८) में भिन्न प्रकार की है। अतः उससे २१ संख्यावाली बातों में श्रावकों के गुण, प्रासुक जल, उद्धत कर परिशिष्ट में दी जा रही है।
पारिणामिकी बुद्धि के दृष्टांत, सबल दोषादि का विवेचन भी ३९. जगन्नाथ कवि की 'चौरासी-शिक्षा' नामक उक्त ग्रन्थ में है। इक्कीस की संख्या बहुत शुभ मानी हिन्दी भाषा की रचना अनूप संस्कृत लाइब्रेरी में है। जाती है। ४०. चौरासी संग भी हमारे संग्रह की प्रति में नाहर
चौरासी की भांति १४ की संख्या भी बहुत प्रसिद्ध जी द्वारा प्रकाशित से भिन्न प्रकार के हैं।
है । इस संख्या वाली अनेक बातों का उल्लेख यत्र-तत्र पाया ४१. महिमाभक्ति भंडार में ८४ 'त' कार वाले एक जाता है जिनमें से कुछ ये हैंकाव्य वृत्ति सहित उपलब्ध है । ४२-४३-४४ ग्रन्थांतरों में १४ राजलोक, पूर्व, गुण-स्थान, स्वप्न, चक्री-रत्न ८४ रत्न. ८४ नरक, ८४ दोषों का भी उल्लेख है। हमारे नियम, उपकरण, अजीव भेद, परिग्रह. महानदियां आदि, संग्रह के 'रत्न-परीक्षा' (तत्वकुमार रचित) नामक ग्रन्थ जैन ग्रन्थोक्त १४ संख्यक २५ बातों का विवेचन 'जैनमें ८४ रनों का उल्लेख है, पर सूची में नाम ६० ही प्राप्त । सिद्धान्त बोलसंग्रह' में प्रकाशित है। हुए हैं। वे एवं अन्य ग्रंथों की नामावलि परिशिष्ट में वैसे १४ स्वर, विद्या, रत्न, यम, इंद्रियाँ, मनु आदि दी गई हैं।
प्रसिद्ध ही हैं। ४२. रामदास वैरावत की ८४ आखडी (नियम ग्रहण)
वारह संख्यावाली उल्लेखनीय बातें इस प्रकार है: हमारे संग्रह में हैं।
१२ उपांग, चक्रवर्ती, भावना, अरिहंत-गुण, तप, श्रावक व्रत ४३. मारवाड़ में कहावत प्रसिद्ध है--
भिक्षु-प्रतिमा आदि जैन धर्म विषयक बातों का विवेचन "चार चोर चौरासी वाणिया. एके के इकीस इकीस 'जैनसिद्धान्त बोलसंग्रह भा०४ में प्रकाशित है। ताणिया"
१२ मास आदि सर्वत्र प्रसिद्ध हैं। * देखें हमारा लेख कवि बखत राम रचित 'बुद्धिविलास' (जैन सिद्धान्तभास्कर )। १८]
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