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________________ का स्वर्गवास हुआ। (8) वी० नि० सं० ५८४ में आर्य वज्र का स्वर्गवास हुआ। (५) वी०नि० सं०५८४ में सप्त निन्हव उत्पत्ति ।। (६) वी०नि० सं०५८४ में आर्यरक्षित का युगप्रधान पद या मतान्तर से स्वर्गवास हुआ। (७) वी० नि० सं० ५८४ में मल्लवादी ने बौद्धों को जीता। (८) वी०नि० सं० १२८४ में महेन्द्रसूरि ने 'मन स्थिरीकरण प्रकरण' एवं 'सारसंग्रह ग्रन्थ बनाया । (९) वि० सं०१६८४ में विजयसिंहसूरि का गणानुज्ञा पद का महोत्सव हुआ। २३. स्व० पूर्णचंद्र जी नाहर ने ८४ तीर्थ कहे जाने का प्रवाद मात्र लिखा है. वास्तव में उसका आधार जिनप्रभसूरि रचित 'चतुराशीति महातीर्थ कल्प' है । इसमें उल्लिखित स्थानों की संख्या अधिक है पर चौरासी संख्या के महत्व के कारण ही उसका नाम 'चतुराशीति महातीर्थ नामसंग्रहकल्प' रखा प्रतीत होता है। २४. चौरासी गच्छों की नामावलि भी कई प्रकार की मिलती है। किसी-किसी सूची में नाम न्यूनाधिक भी हैं। अब सार्वजनिक बातों का निर्देश किया जाता है २५. हमारे संग्रह के 'रत्नकोष' नामक ग्रन्थ में एक ही संख्यात्मक वस्तुओं के प्रकारों की सूची है । उनमें ८४ प्रकार के विज्ञान की सूची है जो इसी लेख के परिशिष्ट में जा रही है। २६. भुवनभक्ति एवं महिमाभक्ति भंडार. बीकानेर की एक प्रति में ८४ तंत्रों की तालिका है। २७. रामविनोद वैद्यक ग्रन्थों में ८४ प्रकार के वाय के नाम हैं जिन्हें अन्य ग्रन्थानुसार परिशिष्ट में दिया जा रहा है। २८. हमारे संग्रह के ज्योतिष संबंधी पत्रों में ८४ योगों के नाम दिये हैं। उन्हें भी परिशिष्ट में दिया जा रहा है। २९. कतिपय छन्द ग्रन्थों में ८४ रूपकों के नाम हैं जिनमें से दो ग्रन्थों की नामावलि परिशिष्ट में दे रहे हैं । 'चतुराशीतिरूपक' नामक छन्दग्रन्थ भी उपलब्ध है। कवि केशवदास की 'धन्दमाला' में भी ८४ छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण हैं। ३०. गंगा के पुरातत्त्वांक में ८४ सिद्धों की नामावलि प्रकाशित हैं। 'वर्णरत्नाकर' में भी ८४ सिद्धों के नाम हैं। ( देखो परिशिष्ट ) ३१. वैष्णवों की संख्या भी ८४ प्रसिद्ध है, जिनका परिचय 'चौरासी वैष्णवों की वार्ता' में पाया जाता है। राजसी, तामसी. सात्विकी ८४/८४/८४ वैष्णवों को मिलाने पर २५२ वैष्णव होते हैं. जिनका परिचय 'दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता में पाया जाता है । ३२. श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि ज्ञानभण्डार की एक प्रति में मूरों के भी ८४ लक्षण बतलाये हैं। ३३. बीकानेर की अनूप संस्कृत लाइब्रेरी की १ प्रति में ८४ मुद्राओं का भी उल्लेख है। ३४. महिमामक्ति भंडार में 'राग चौरासी' नामक संगीत . का ग्रन्थ है जिसका परिचय मेरे सम्पादित 'हिन्दी ग्रन्थविवरण' भा०२ में प्रकाशित हो चुका है। ३५. विद्याविभाग काँकरोली से प्रकाशित 'प्राचीनवार्तारहस्य' के पृ०२१/२२ में ८४ कंजों की नामावलि दी गई है। (देखो परिशिष्ट ) ३६. सं० १२८५ के लगभग रचित विनयचन्द्र के 'कविशिक्षा' नामक ग्रन्थ में ८४ देशों का उल्लेख है पर नाम ७१ ही दिये हैं। हमारे संग्रह के रत्नकोष में उससे भिन्न प्रकार के ८४ देशों की नामावलि है. अतः दोनों को परिशिष्ट में दिया जा रहा है। ३७. चौरासी जातियों की सूची भी ग्रन्थान्तरों में भिन्न-भिन्न प्रकार की पाई जाती है जिनमें से सं०१४७८ के 'पृथ्वीचन्द्र चरित्र' आदि में जो नामावलि है वह परिशिष्ट में दे रहे हैं। सं०१९५० में शिवकरण रामरतन दरक ने 'इतिहासकल्पद्रम माहेश्वरी कुलशुद्धदर्पण' नामक ग्रन्थ [१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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