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________________ प्रकाशित कर चुका हूँ। वैसे दिगम्बर श्वेताम्बर के ७१६ भेद भी कहे जाते हैं पर वे प्राप्त नहीं हुए। ३. भगवान ऋषभदेव के पुण्डरीकादि ८४ गणधर थे। ४. आचार्य स्थूलिभद्र का नाम ८४ चौवीशी तक प्रसिद्ध रहने का कहा जाता है। ५. जैन मंदिरों में ८४ कार्य निषिद्ध हैं जिन्हें 'आशातना' कहते हैं। हमारे प्रकाशित 'जिनराज-भक्ति आदर्श' में ८४ आशातनाओं की सूची प्रकाशित है। ६. १४वीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध जैन श्रेष्ठी पेथड़शाह ने ८४ स्थानों पर जैन मंदिर बनाये थे। सोमतिलकसूरि के 'चैत्य-स्तोत्र' में उनके नामों की सूची प्राप्त है। ७. पन्द्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध पोरवाड वंशीय धरणाशाह ने राणकपुरमें कलापूर्ण त्रैलोक्यदीपक जैन मंदिर बनाया जिसमें ८४ देहरियों के होने का उल्लेख महोपाध्याय समयसुन्दर जी ने किया है-"देहरी चौरासी दीपती रे लाल ।" ८ वैसे जैनागमों की संख्या ४५ कही जाती है पर 'जैन ग्रन्थावली' में आगमों की संख्या ८४ बतलाते हुए उनके नामों की तालिका प्रकाशित की गई है। 'जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास' एवं 'शीघ्रबोध' में ये नाम भिन्न प्रकार से दिये गये हैं। ९. जैनागम 'सूत्र कृताङ्ग सूत्र में तत्कालीन ३६३ पाखंडियों-मतवादों का उल्लेख है उसमें अक्रियावादी के ८४ भेद बतलाये गये हैं। १०. दिगम्बर सम्प्रदाय के प्रधान एवं प्राचीन आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों के नाम 'पाहुड़, (प्राभूत) संज्ञक कहे जाते हैं एवं उनकी संख्या भी ८४ होने का प्रेमी जी आदि ने उल्लेख किया है. पर सूची अभी तक ५२ पाहुड़ों की ही ज्ञात है, एवं उनमें से उपलब्ध तो बहुत थोड़े से ही हैं। (दे० परिशिष्ट ) ११. अंचलगच्छ की बड़ी पट्टावली में ८४ गच्छ स्थापक ८४ आचार्यों के नाम दिये हैं। १२. उपकेशगच्छ के ८४ आचार्य परंपरा की नामावलि 'जैनजातिमहोदय' में प्रकाशित है । (देखो परिशिष्ट) १३. बीकानेर के वृहद् जैन ज्ञान भंडार में ८४ विरुद छंद हैं जिनमें ८४ विरुदों के नाम हैं। १४. 'प्रभावक - चरित्रानुसार' शांतिसूरिजी ने ८४ . वादों में विजय प्राप्त को थी एवं राजा भोज से उन्हें ८४ लाख रुपयों की प्राप्ति हुई थी। १५. पत्तन मंडार सूची के पृ० २४५ के अनुसार अभयदेवसूरिजी भी ८४ वादविजेता थे। 'भरतबाहुबलिरास' की प्रस्तावनानुसार राजगच्छ के प्रद्युम्नसूरि भी ८४ वाद-विजेता थे। १६. 'उपदेशतरंगिनी' एवं 'पट्टावली समुच्चय' के पृ० २४५ में वादिदेवसूरि को भी ८४ वादविजेता बतलाया गया है । १७. सुप्रसिद्ध जैनाचार्य हेमचंद्रसूरि की आयु ८४ वर्ष की थी। १८. 'प्रभावकचरित्रा' नुसार ८४ श्रावकों ने नवाङ्ग टीकाओं की ८४ प्रतिलिपियें करवा के आचार्यों को मेंट की। १९. गणधर सार्धशतक वृहद्वृति' के अनुसार वर्द्धमानसरि जी के गुरु जिनचंद्राचार्य ८४ देवगृहों के नायक थे। 'प्रभावकचरित्रा'नुसार वर्द्धमानसूरि भी ८४ चैत्यों के नायक थे। २०. उपर्युक्त ग्रन्थ में पाटण में सूराचार्यादि ८४ चैत्यवासी आचार्य थे, लिखा है। २१. वादिदेवसूरि के 'स्यादवादरत्नाकर' ग्रन्थ का परिमाण ८४ हजार श्लोक प्रमाण है । २२. चौरासी संख्यासूचक वर्षों में जो-जो प्रधान घटनायें हुई उनमें से कतिपय ये हैं। (१) वीरात् ८४ अजमेर म्यूजियम का सबसे प्राचीन जैन लेख । (२) वीरात् १८४ में चंद्रगुप्त का स्वर्गवास । बिन्दुसार का राज्यारोहण। (३) वीरनिर्वाण सं०४८४ में आर्य खपुट जैनाचार्य १६] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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