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शीर्षप्रहेलिकांग
शीर्षप्रहेलिका
चूलिकांग, चूलिका, कहते हैं। **
बाहुबली की भी इतनी ही आयु, श्रेयांसनाथ अरिहंत की ८४ लक्ष वर्षों की आयु. त्रिपृष्ट वासुदेव की आयु भी ८४ लक्ष वर्षों की थी। देवेन्द्र शक्र के ८४ हजार सामानिक देव हैं। वाहर के सब मेरु पर्वत ८४००० योजन ऊंचे हैं, इसी प्रकार समस्त अंजनगिरि भी हरिवास और रम्यक क्षेत्र के जीवों की धनुपृष्ट का विस्तार ८४४१६ योजन का है। पंकबहुल नामक पृथ्व कांड के ऊपर के चरमान्त से नीचे के चरमान्त तक ८४ लाख योजन का अबाधित अन्तर है। पंचमाङ्ग भगवती सूत्र के ८४ हजार पद हैं। नागकुमारों के चौरासी लाख आवास कहे हैं। ८४ हजार प्रकीर्णक, ८४ लक्ष जीवा योनि* पूर्व से लेकर शीर्षप्रहेलिका तक पहले से पीछे तक चौरासी लाख का गुणाकार कहा है। श्री ऋषभदेव भगवान की साधुसम्पदा भी ८४००० की थी । सब मिलकर वैमानिक देवों के विमान ८४ लाख ९७ हजार और २३ हैं ऐसा श्री भगवान ने फरमाया है।
ऊपर जो पूर्व से लेकर शीर्षप्रहेलिका की गणना का उल्लेख किया गया है उसका विस्तृत खुलासा पंचम अंग भगवती सूत्र में इस प्रकार किया है
चौरासी की संख्या हमारे साहित्य एवं दैनिक व्यवहार में इतनी व्यापक हो गई है कि धर्म, समाज, वैद्यक, ज्योतिष, तंत्र, संगीत. छन्द, योग, भोग ( कामशास्त्र) आदि अनेक विषयों में इसकी प्रधानता के दर्शन होते हैं। पाठकों की जानकारी के लिये ज्ञात ८४ बातों की सूची नीचे दी जा रही है। इसमें जैनागम समवायांग सूत्र के ८४ समवाय को पहले उद्धृत करने के कारण जैन सम्बन्धित ८४ बातों का परिचय पहले देकर फिर सार्वजनिक ८४ बातों का परिचय कराया जायगा।
१. जैन मुनियों का दीक्षित होते समय नाम बदल दिया जाता है तब जेसे संन्यासियों में गिरी, पुरी, भारती
आदि १० नामान्त पद वाले नाम रक्खे जाते हैं, उसी प्रकार खरतरगच्छ में मुनियों के ८४ नामान्त पदों को 'नंदी' कहा जाता है। हमारे अन्वेषण से यद्यपि ऐसे नामान्त पद ८४ से अधिक मिले हैं। मुनियों की भाँति साध्वियों के भी ८४ नामान्त पद कहे जाते हैं।
२. जैनधर्म के दो प्रधान सम्प्रदाय हैं-दिगम्बर एवं श्वेताम्बर । इन दोनों सम्प्रदायों में मान्यता भेद ८४ माने जाते हैं जिनके सम्बन्ध में हेमराज का हिन्दी पद्यात्मक ग्रन्थ एवं उसके प्रत्युत्तर में उपाध्याय यशोविजय जी का "दिगंबर ८४ बोल ' ग्रन्थ उपलब्ध है। इन
भेटों की सची को भी अनेकांत वर्ष २ अंक २ में
८४ लाख वर्ष का १ पूर्वाङ्ग, ८४ लाख पूर्वाङ्ग का ? पूर्व, इसी प्रकार प्रत्येक संख्या को ८४ से गुणन करने से जो संख्या आती है उसे अनुक्रम से त्रुटितांग, त्रुटित, अडडांग. अडड, अववाँग. अवव. हूहूआंग. हूहूअ. उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म. नलिनांग. नलिन, अर्थ- निउरांग, अर्थ निउर. अयुतांग, अयुत. नयुतांग नयुत,
*जैन शास्त्रानुसार ७ लाख पृथ्वीकाय. ७ लाख अपकाय, ७ लाख तेजकाय, ७ लाख वायुकाय, १० लाख प्रत्येक वनस्पति काय, १४ लाख साधारण वनस्पति काय.२ लाख दो इन्द्रिय.२ लाख तीन इन्द्रिय, २ लाख चार इन्द्रिय.४ लाख देवता, ४ लाख नारकी. ४ लाख तिर्यंच पंचेन्द्री. १४ लाख मनुष्य इस प्रकार ८४ लक्ष जीवयोनि की संख्या मानी जाती है तब जैनेतर ग्रन्थों में जलचर ९ लाख. मनुष्य ४ लाख. स्थावर २७ लाख, कृमि ११ लाख, पक्षी १० लाख. चतुष्पद २३ लाख इस प्रकार ८४ लाख जीवयोनि कही जाती है ।
** अनेकांत, वर्ष ३ अंक ९, "जैनग्रन्थों में समयगणना" शीर्षक लेख ।
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