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________________ २६. जिण भुइ पन्नग पीयणा 'कयर'-कंटाला रूख ॥६६१ यहाँ कयर' शब्द का अर्थ गुप्तजी सं० कदर क्तलाते हैं। इसका अर्थ कैर ही होता है। दोहा सं० ४३० में इसका विवेचन किया जा चुका है। यहाँ कतिपय दोहों के अर्थसंशोधन पर ही प्रकाश डाला गया है। इसके अतिरिक्त और भी उनके किए हुए बहुत से शब्दों के अर्थ विचारणीय हैं। तीस वर्ष पूर्व स्वामी जी आदि ने अनुसंधान का जितना सुंदर प्रयत्न किया था वह अवश्य ही सराहनीय है। गुप्तजी जैसे विद्वान ने अर्थ संशोधन करते हुये कितनी अधिक भूलें को हैं यह उपर्युक्त विचारणा से पाठकगण स्वयं समझ लेंगे। होते हैं, यह जान लेना भी अत्यंत आवश्यक होता है क्योंकि वहीं उसके अर्थ की परंपरा सही रूप में प्राप्त हो सकती है। केवल एक ग्रथ में ही नहीं, अनेकों ग्रंथों व बोलचाल में भी वे शब्द व्यवहृत होते हैं इसलिये कहाँ और किस अर्थ में कौन-सा शब्द प्रयुक्त हुआ है. इसे ध्यान में रखते हुए अर्थसंगति ठीक से बैठाई जा सकती है। उपर्युक्त विचारणा से विद्वान एवं पाठकगण इस बात को अच्छी तरह अनुभव कर सकेंगे कि 'ढोला मारू रा दूहा' में प्रयुक्त शब्द आज भी राजस्थान में पर्याप्त प्रसिद्ध और व्यवहत हैं। गुप्त जी के किये हुए कई अर्थ तो बड़े विचित्र से लगते हैं। अस्तु, अन्य विद्वान भी इस संबंध में विशेष प्रकाश डालेंगे, ऐसी आशा है। अभी बहुत से शब्दों के अर्थ विचारणीय हैं। शब्दों का सही अर्थ जानने के लिये जो रचना जिस प्रांत की हो, उस प्रांत में वे शब्द किस अर्थ में प्रयुक्त [ १३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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