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खीर पकाई ग्वाले ने प्रक्षेप कूप में चोर बना संगम ने चिर कष्ट दिए पर अडिग मेरू सम धीर धना । चण्ड दृष्टि-विषधर कौशिक का दंश दुग्धधारा प्रवही बुज्झ ! बुज्झ ! इन शब्दों से प्रतिबोधित अष्टम स्वर्ग लही ॥ ५ ॥ शूलपाणि देवगृह में सह परिषह प्रभु उत्तीर्ण बने कानों में कीलें ग्वाले ने ठोके तो भी समभाव घने । तेजोलेश्या से दग्धमान संरक्षण कृत गोशालक के दुष्टों पर भी करुणा करते प्रभु भावदया के धारक थे ।। ६ ।। छ: चार मास दो एक मास पक्षक्षमणादिक उपवासी अभिग्रह धरके विचरे चन्दनबाला ने पारे कुल्माषी। वैशाख शुक्ल दश रिजुवालु तटिनी तट में श्यामाक खेत गोदोहन मुद्रा में बैठे कर गति कर्म क्षय ध्यान श्वेत !॥ ७॥
आ महासेन वन पावा में प्रभु तीर्थ प्रवर्तन आप किया ग्यारह गणधर को चार हजार चारसौ सह चारित्र दिया । इन्द्रभूति गौतम स्वामी थे लब्धिवंत गुरु भक्त गुणी चन्दनबाला छत्तीस सहस आर्यागण में थी मुख्य सुणी ॥ ८॥ साद्धलक्ष नव सहस श्राद्ध आनंद कामदेव पुणिया थे लख तीन अठारह सहस संख्य सुलसा जयन्ती श्राविकाएँ । दशार्ण-शालिभद्रादिक ने दीक्षित हो आत्मोद्धार किया लघुवय अतिमुक्तक ने भी पा कैवल्य चमत्कृत लोक किया ॥९॥ कोणिक श्रेणिक चेडाराजा उदयन नन्दिवद्धन भ्राता भक्त अनेकों नरपति गग थे भारत भू के विख्याता। स्याद्वाद कर्म सिद्धान्त अहिंसा अध्यात्म रस से पूरित वाणी जिनकी फैली जग में दर्शन ज्ञान चरण संयुत ।। १०॥ द्विसप्तति वर्षायु में चौमास अपापा में आये हस्तिपाल रज्जुगशाला अष्टादश नृप पौषध ठाये । दो दिन व्यापी उपदेश दिया कात्तिक अमावस रात्रि में प्रहरान्तिम में प्रभु मोक्ष गए नाग करण अरु स्वाती में || ११ ।। प्रवचन प्रभु का विस्तार जगत में इस शुभअवसर पर होवे साद्धद्वय सहस संवत्सर का उत्सव सब पापों को धोवे। सुखी बने सब ही प्राणी प्रभु नाम हमें सुखदायक हो भँवर' कामना मात्र यही जय जय जय शासन नायक हो ॥ १२ ॥
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