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रहा है, तो अगरचन्दजी वहां पहुंचे और उसे खरीद लिया । इसी तरह जयपुर के कबाड़ियों से अच्छा संग्रह बिकने की सूचना मिली ता वहाँ पर जाकर ले लिया गया।
"भारत का विभाजन होने पर पंजाब का ग्रन्थ-संग्रह भी खूब बिकने लगा । हमारे मित्र स्वर्गीय डॉ० बनारसी दास जैन ने एक कबाड़ी को कह दिया था कि नाहटाजी हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह कर रहे हैं उन्हें तुम प्रतियों का बन्डल मेजते रहो, वे उनका उचित दाम लगाकर भेजते रहेंगे। फलतः उस पंजाबी कबाड़ी ने कई वर्षों तक बड़ेबड़े पुलिन्दे पार्सल करके भेजे इस तरह इधर-उधर से प्रयत्नपूर्वक संग्रह करते करते हो इतना बड़ा संग्रह हो सका है ।
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"हस्तलिखित ग्रंथों की खोज के लिये अनेक जैन-जेनेतर ज्ञान भण्डारों में जाना पड़ा है और लाखों हस्तलिखित प्रतियाँ देखकर उनमें से जो-जो महत्वपूर्ण एवं अमूल्य तथा दुर्लभ प्रतियाँ देखने व जानने में आई, उनके नोट्स ले रखे हैं। जहां तक सम्भव हुआ अन्यत्र के महत्वपूर्ण दुर्लभ ग्रन्थों को जो अपने संग्रह में भी रखना आवश्यक समझा ऐसे सैकड़ों रचनाओं की नकलें करवाई हैं और बहुत-सी प्रतियों के तो काफी खर्च करके फोटो और माइक्रोफिल्म करवा ली गई हैं। इस तरह जो महत्वपूर्ण ग्रंथ मूल हस्तलिखित प्रति के रूप में प्राप्त नहीं किया जा सका. उसकी प्रतिलिपि करवा कर अभय जैन ग्रंथालय में संग्रहीत की गई है।"
हिन्दी, संस्कृत, राजस्थानी, गुजराती प्राकृत, अपभ्रंश के अतिरिक्त इस ग्रंथालय में उत्कल, शारदा, ठाकरी. कन्नड़, तमिल बंगला, पंजाबी सिन्धी, उर्दू फारसी, कश्मीरी आदि भाषाओं की पांडुलिपियां भी विद्यमान हैं।
हस्तलिखित ग्रन्थों के समान ही मुद्रित पुस्तकें भी यहां उपलब्ध हैं जिनकी संख्या ५०,००० के आस-पास है। पांडुलिपियां और छपी हुई पुस्तकें प्रायः सभी विषयों पर पायी जाती हैं । पुस्तकों के अलावा अगरचन्दजी के समय में यहां पत्रिकाएँ बहुत बड़ी संख्या में आती थीं और विशेष बात यह है कि कोई भी पत्रिका रद्दी में नहीं फेंकी जाती थी। सारी पत्रिकाओं की व्यवस्थित फाइलें इस प्रन्थालय में विद्यमान हैं। एक उल्लेखनीय बात और अन्य विद्वानों के जितने भी पत्र नाहटाजी को प्राप्त होते, उन्हें वे नष्ट नहीं करते थे। ये पत्र आज भी बोरों में भरे हुए हैं।
इस ग्रन्थालय के सम्बन्ध में विद्वानों की सम्मतियां भी ज्ञातव्य है : बासुदेवशरण अग्रवाल के विचार से "नाहटाजी ने अकेले एक संस्था का काम पूरा किया है। आगे आने वाली पीढ़ियां इसके लिये उनकी आभारी रहेंगी।" वाडिया कॉलेज, पूना में संस्कृत के प्रोफेसर पी० एल० वैद्य ने अंकित किया- "I am pleased to see the wonderful and valuable collection of Nahata family at Bikaner.” डॉ० भोगीलाल जे० सडिसरा के शब्दों में- " Any person interested in Indological research and Indian art coming to Bikaner will be immensely benefited if he pays a visit to Shri Abhaya Library and the Museum located in it, so ably and efficiently managed by Shri Nahata" अहमदाबाद के जितेन्द्र जेटली के शब्दों में, "यह संग्रह देखकर मुझे विशेष प्रसन्नता इसलिए हुई कि इस जमाने में भी उच्च अभ्यास और संशोधनों के योग्य प्राचीन ग्रन्थों का और कलाकृतियों का ऐसा संग्रह इतने व्यवस्थित रूप से, किसी संस्था ने नहीं, वरन् एक व्यक्ति ने किया है। भारत के प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास, साहित्य और संस्कृति
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