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के अभ्यासकों को जब भी अवसर मिले, यह संग्रह अवश्य देखना चाहिए।" राजस्थान पुरातत्त्व संग्रहालय विभाग के ड० सत्यप्रकाश के अनुसार, "जो अब तक राज्याश्रय द्वारा न हो सका, वह श्री नाहटाजी अपने अथक परिश्रम से पूरा करने की चेष्टा कर रहे हैं और बहुत अंश तक सफल भी हुए हैं । आपके भतीजे श्री भंवरलाल जी का योग सोने में सुहागे का कार्य कर रहा है। भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान में और विशेषतया राजस्थानी संस्कृति को जीवित रखने एवं गौरवान्वित करने में आपके सदृश कलाप्रेमियों की स्वतन्त्र भारत को आवश्यकता है।" हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी के उदयशंकर शास्त्री के अनुसार "इस अद्भुत संग्रह में इतने रत्न भरे पड़े हैं कि युगों तक उनका मूल्य बढ़ता ही जायेगा।" लन्दन विश्वविद्यालय के डब्ल्यू० एस० कुला के अनुसार “This has been a most interesting collection. It is truly a great credit that one has organised so fine a collection of books, manuscripts and objects of art."
इस प्रकार हम देखते हैं कि अपने विद्या-व्यसनी पुत्र अभयराज नाहटा की स्मृति को अक्षुण्ण रखने के लिए उनके यशस्वी पिता शंकरदान नाहटा ने जिस अभय जैन ग्रन्थालय की स्थापना का संकल्प किया और जिसे उनके पुत्रों, पौत्रों ने मूर्त रूप दिया, उस अभय जैन ग्रन्थालय की देश-विदेश के पण्डितों एवं कला-मर्मज्ञों ने मुक्त. कण्ठ से प्रशंसा की है। एक समय आ गया था जब इस अद्वितीय संग्रह का स्थानान्तरण दिल्ली में करने की चर्चा चली थी। राजस्थान के सौभाग्य से यह संग्रह अभी तक बीकानेर में बना हुआ है और विश्वास है कि अब यहीं बना रहेगा। जिस भावना के साथ स्वर्गीय शंकरदानजी ने इनकी स्थापना का संकल्प लिया, जिस अदम्य उत्साह के साथ अगरचन्दजी, भंवरलालजी आदि ने उसे स्थापित किया और जिस लगन के साथ अगरचन्दजी नाहटा ने इसे पनपाया उसी का फल है कि यह संस्था अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर सको। आवश्यकता इस बात की है कि इसके सम्बंध में व्यक्ति पूर्णतया जागरूक रहे ताकि जिस उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई है, उसका निर्वाह निरन्तर होता रहे।
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