________________
परिषद की स्थिति
पूज्य आचार्यश्री की कृपा से परिषद सम्पूर्ण भारत में जाल की भांति फैल चुकी है। इसकी जड़ें गहरी हैं। मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तामिलनाडु, आंध्र आदि प्रदेशों में परिषद की शाखाएं कार्यरत हैं। आज पूज्य आचार्य हमारे बीच होते तो उनके आनंद का पारावार न रहता परिषद के विकास को देखकर। __सर्वप्रथम श्री मोहनखेड़ा तीर्थ में परिषद का अधिवेशन हुआ। द्वितीय अधिवेशन रतलाम नगर में निर्विघ्न सफलीभूत हुआ। कठिनाइयां तो आती हैं लेकिन पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद से बाधाएं दूर होती रही हैं। आज असहयोगी भी समर्पित हो गये।
रतलाम वह स्थली है जहां अभिधान राजेन्द्र कोष तथा राजेंद्र ज्योति जैसे अमर तथा महत्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रंथों का प्रकाशन हुआ । पूज्य मुनिराजश्री को कोटिशः वंदन । मेरी भावना
जे वैर वृत्ति राखशे हुं तेहथी करि मित्रता, नहीं दिल दुखाऊं कोई नुं राखी हृदय पवित्रता, बस एज नु झरणुं सर्वदा मझ उर विशे बहेतु रहे,
करूँ त्राण हुँ सहु जीवनुं सहुं मृत्यु थी जीवन लहे ।। परिषद्-शाखाएँ
मद्रास मद्रास की त्रितुतिक जैन समाज में एकता, प्रगति तथा समाजोस्थान की भावनाएं लहर की भांति अंगड़ाई खा गई। श्रीमद् राजेन्द्र सूरी जैन ट्रस्ट की स्थापना के छह मास उपरान्त ही युवक वर्ग ने श्री राजेन्द्र जैन परिषब् का बीजारोपण कर दिया। मद्रास नगर की जैन समाज में वैसे ग्यारह मण्डल कार्यरत हैं जो सामाजिक प्रसंगों तथा जयन्ती-उत्सवों पर सेवा व संगीत के आयोजन करते हैं लेकिन परिषद की स्थापना सामाजिक क्षेत्रों को अनूठी देन रही। वहां लोकगीत भजनावली गाने वाला एक भी मण्डल नहीं था जो अपनी राग में गाता और अपनी भाषा में समझाता । परिषद ने इस दिशा को अपनाया और उसका परिणाम काफी सकारात्मक आया। प्रथम वर्ष में ही परिषद ने महावीर जयन्ती पर बरछोड़ में झांकी प्रदर्शित की तथा संगीत प्रतियोगिता में भाग लिया। दोनों में ही मद्रास परिषद् को प्रथम स्थान पुरस्कार के प्राप्त हुए। अपनी जनता, अपनी भाषा, अपना वेश (झिब्बा, धोती व केशरिया साफा) परिषद् के परिचायक के रूप में उठा । सेवा भक्ति तथा अंगरचना से परिषद की कर्मठता परिलक्षित होने लगी। मद्रास में प्रथम बार पन्द्रह हजार विविध पुष्पों से भगवान श्री चन्द्रप्रभुस्वामी की अंगरचना पर्युषण में अनोखी शान के साथ की गई। तीस हजार श्रद्धालुओं ने उसका दर्शन किया ।
कार्तिक पूर्णिमा तथा चैत्री पूर्णिमा के केशरवाड़ी मेलों में परिषद् ने उल्लेखनीय सेवा प्रदर्शित की । इससे पूरे शहर में परिषद
पर वाह वाह की शाबाशी बरसने लगी । पपरषद् के प्रति दक्षता व क्षमता का विश्वास समाज में जाग गया। आसपास के बहुत से शहरों में प्रतिष्ठा प्रसंगों, पूजा आयोजनों व मेलों में कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिये परिषद को आमंत्रित किया जाने लगा। मण्डल ने सिनेमा की छिछली तरज व ओछे अरथ को छोड़कर नया भक्ति युग पैदा कर दिया।
उपरान्त परिषद के तत्वावधान में ४५० यात्रियों की स्पेशल ट्रेन कार्तिक शुक्ला ९ के शुभ मुहूर्त में भारत की प्राचीन कल्याण भमियों, तीर्थों की यात्रा के लिये निकाली गई। यह कार्यक्रम काफी सफल रहा व उत्तमता प्राप्त कर गई। इस शुभ कार्य में यात्रियों ने सामूहिक रूप से लगभग छह लाख रुपया व्यय किया। उज्जैन के श्री राजेन्द्र सूरि ज्ञान मंदिर में लगे चित्रपट इस यात्री संघ की स्मृति को सदियों का जीवंत रखेंगे। श्री सम्मेदशिखर धर्मशाला में पच्चीस कमरे एक साथ इन्हीं यात्रियों ने लिखवाये। श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पर भी यात्रियों ने काफी कमरों के लिये धनराशि दी। वर्तमान में संगीत बाल विभाग भी खोला गया हैं जिसमें विविध साज संगीत के प्रसाधनों का प्रबंध है। वाद्य यंत्रों व नृत्य कला का प्रशिक्षण इसके अन्तर्गत दिया जाता है।
श्री राजेन्द्र गीत माला का प्रथम पुष्प यात्री संघ के समय पूर्ण हुआ था, द्वितीय पुष्प प्रकाश्य है। सेवा विभाग, आंगी विभाग, संगीत विभाग तथा प्रसार विभाग का कार्य भी सुचारु रूप से चल रहा है। गत वर्ष भी महावीर जयन्ती पर आयोजित झांकी प्रतियोगिता में श्री मद्रास जैन संघ ने प्रथम पुरस्कार की शीला प्राप्त की थी। सदस्यों में उत्साह अच्छा है। परिषद् को काफी ज-प्रियता प्राप्त हो गई है।
बैंगलोर भारतवर्ष के शहरों में बैंगलोर का इसके सौन्दर्य व वातावरण के कारण अपना विशिष्ट स्थान है। यह एक उन्नत व्यावसायिक केन्द्र भी है। इस कारण राजस्थान एवं समस्त उत्तर भारत के लोग इस क्षेत्र की ओर आकर्षित हो रहे हैं । व्यावसायिक प्रगति के साथ यहां पर उत्तर भारतीय जनता की संख्या भी बढ़ने लगी। इनमें जैन धर्मावलम्बियों की संख्या अपेक्षा त ज्यादा है । अतः जनसंख्या की बढ़ती आवश्यकतानुसार यहां पर जैन मंदिर, धर्म शालाओं व अन्य धार्मिक स्थानों का निर्माण होता रहा है। वर्तमान में यहां पर सात बड़े मंदिर एवं १५ छोटे व गृह मंदिर हैं। दो मंदिर निर्माणाधीन हैं। कई वर्षों से गुरु र की मंदि कमी महसूस हो रही थी, वह भी करीब चार वर्ष पहले दूर हो गई। चार वर्ष पूर्व श्री राजेन्द्रसूरि जैन ज्ञान मंदिर के रूप में गुरु मंदिर का स्थापना हुई । इसके साथ ही अखिल भारतीय श्राराजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद् की शाखा की भी स्थापना हुई। ___ संवत् २०३० के चैत्र कृष्णा १ शनिवार तारीख ९-३-७४ को परिषद् शाखा की स्थापना हुई। उस वर्ष में निम्न कार्यक्रमों का आयोजन सफलता पूर्वक हुआ ।
वी. नि. सं. २५०३
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org