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आचार्य श्री यतीन्द्र और परिषद्
सुजानमल सोनी
परिषद की स्थापना कैसे?
कई वर्षों की बात है कि समाज में संगठन नाम की कोई संस्था नहीं थी। चारों ओर सूना सूना था, फीका वातावरण था। एक स्वधर्मी दूसरे स्वधर्मी को पहचान नहीं सकता था, कोई माध्यम नहीं था पहचान का । समाज में शैथिल्यता की स्थिति थी। ऐसा लगता था मानो वृक्ष के सब पत्ते पीले होकर झर गये हों और वृक्ष नग्न हो गया हो, एका की रह गया हो।
ऐसी स्थिति समाज की बन गई थी तब पूज्य गुरुदेव १००८ यतीन्द्र सूरीश्वरजी सूखे, एकाकी, ठंठ वृक्ष में नई चेतना लाने, हरे-भरे, फलने-फलने के लिए, अपने अंतिम दिनों में कहा करते थे, प्रेरित करते थे और सामाजिक उत्थान के लिये उत्साहित करते थे ।
समाज की दयनीय अवस्था के समय मुनिराज श्री जयंतविजय 'मधुकर' के मालव प्रदेश बिहार के समय रतलाम आगमन हुआ। मालव प्रदेश में रतलाम का महत्वपूर्ण स्थान और गौरव है।
रतलाम नगर के युवकों के मन में पूज्य गुरुदेव की प्रेरणा कार्य कर रही थी और समाज के लिए एक पीड़ा थी । पूज्य मुनिराज श्री जयंत विजयजी से भेंट कर अपनी व्यथा सुनाई। समाज में भी एक ऐसा संगठन होना चाहिए जो समाज चेतना तथा उत्थान का कार्य करे, लम्बी चर्चा के पश्चात् पूज्य मुनिराज श्री ने निर्देश दिया कि यदि ऐसी बात है तो आप युवक एक निश्चय के साथ करमदी (तीर्थ जो रतलाम नगर से २ किलोमीटर दक्षिण में है) आना। यह एक परम योग था कि रात्रि भी व्यतीत नहीं होने दी और ११ बजे (रात्रि) पूज्य मुनिराजश्री के सान्निध्य में श्री मदनलाल सुराणा, श्री हस्तीमल सुराणा श्री जेठमलजी लुणावत, श्री नाथुलालजी सोनी और मैं आदि जन पहुंच गये। संक्षिप्त चर्चा के पश्चात् पूज्य आचार्य श्रीमद्विजयराजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के नाम से संस्था का निर्माण किया जावे। इसकी
शाखाएं सम्पूर्ण भारत में हो ऐसा सर्व सम्मत निश्चय किया गया। रात्रि के १२ बज रहे थे, चन्द्रमा अपने पूरे प्रकाश से जगमगा रहा था, सर्वत्र चांदनी फैली हुई थी। झरना अपनी कल-कल ध्वनि बिखेर रहा था। ऐसे मनोरम क्षणों में गुरुदेव की समाज हितध्वनि सुनाई पड़ रही थी। वैशाख शुक्ला ७ सं. २०१६ की रात्रि १२-१ बजे के मध्य श्री राजेन्द्र जैन नवयवक परिषद' की सर्वप्रथम करमदी तीर्थ (रतलाम) में स्थापना हो गई । बीज का वपन हुआ । आज वही बीज वट वृक्ष के रूप में विद्यमान है।
पूज्याचार्य श्री यतीन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के पास से परिषद के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु मुनिराजश्री के साथ प्रतिनिधि गण श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पहुंचे । आचार्य श्री का आशीर्वाद ____ पूज्य मुनिराजश्री के साथ आचार्य श्री के पास पहुंचे। आचार्य श्री से निवेदन के पश्चात् कहा अरे भाई ! बहुत सी संस्थाएं बनी और बिगड़ गई। मेरा अनुभव है अनेक ग्रामों (गांवों) में बहुत से नाम की संस्थाएं बनी और बिगड़ी। कई मंडल के बंडल बन गये। वे अभी तक नहीं खुले । दीर्घ चर्चा के पश्चात् गुरुदेव ने संस्था को अशीर्वाद प्रदान किया। गुरुदेव से चर्चा करना असाधारण कार्य
पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री के निकट पहुंचना और उनसे चर्चा करना अत्यन्त ही कठिन कार्य था। पूज्य मुनिराजश्री के माध्यम से हम निश्चित चर्चा करते रहे । पूज्य आचार्यश्री की भावना थी कि नगर-नगर, ग्राम-ग्राम में धार्मिक विद्यालय संचालित हों और समाज को धार्मिक ज्ञान प्राप्त हो। मध्यमवर्गीय परिवारों को आर्थिक सहायता मिले। उनके कष्ट में हमारे कार्यकर्ता कार्य करें, वे पिता की भांति अपने पुत्रवत् घंटों समझाते थे। वे दिन अब स्मृति बन गये हैं।
राजेन्द्र-ज्योति
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