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इस अणुयुग में जहां एक ओर समाजवाद के नारे लगाये जा रहे है। वहीं दूसरी ओर गरीब और अमीर के बीच की बाई तो बड़ती ही जा रही है किन्तु मध्यमवर्ग की समस्याएं भी बढ़ती ही जा रही हैं। जहां इन्सान अपनी आवश्यकता पूर्ति हेतु नित नये आविष्कार करता जा रहा है वहां स्वार्थभावना व्याप्त होती जा रही है, नीति भुलायी जा रही है। इन्सान के हृदय में सच्चा प्रेम मिलना दुर्लभ हो गया है। हम अपने दिल के झरोखे में झांककर देखें तो पता चलेगा कि कितनी दूर रह गई है हमसे मानवता । चंद चांदी के टुकड़ों के खातिर लोभ में हम अपना ईमान बेचने को तैयार हो जाते हैं हमारी संस्कृति को सरेआम नीलाम होता देखकर भी हम चैन की निद्रा सो रहे हैं। ईर्ष्या का साम्राज्य चारों ओर व्याप्त हो चुका है। भौतिकवाद की तेज आंधी में हम अपनी मंजिल से भटककर गुमराह हो गये हैं। समाज में फैली कुरीतियां दहेज प्रथा आदि से हम आज तक पीछा नहीं छुड़ा सके हैं। एक ओर हमारे कई साधर्मिक बन्धुओं की आर्थिक हालत खराब है दूसरी ओर हमारी युवा पीढ़ी सही मार्गदर्शन के अभाव में भटक रही है। आध्यात्मिक (धार्मिक) ज्ञान के अभाव में यह वर्ग धर्म विमुख होता जा रहा है । यही शक्ति कुमार्ग पर लगती जा रही है जिसके नित नये किस्से सुनकर हमारा कलेजा थम जाता है ।
बी.नि.सं. १५०३
परिषद् की समाज में आवश्यकता
जुगराज के. जैन
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अगर यही विषम हालत हमारी रही तो आने वाला समय हमें कभी माफ नहीं करेगा । अपने भव्य और अमूल्य संस्कृति के वारसे को खोकर हम अपने आपको मानव कहलाने के हकदार भी नही होंगे ।
इन सब समस्याओं का समाधान है-परिषद ।
अखिल भारतीय राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद के नाम से परम पूज्य गुरुदेव श्रीमद् विजय पतीन्द्रसूरीश्वरजी द्वारा संस्थापित यह संस्था — संगठन में शक्ति है का शंखनाद करती हुई हमें जाग्रत कर रही है अपने महान उद्देश्यों (समाज संगठन, धार्मिक शिक्षा प्रचार, समाज सुधार, आर्थिक विकास) को लेकर हमें प्रगति व विकास करने का आव्हान दे रही है ।
अब समय आ गया है हर गांव का हर व्यक्ति इसका सदस्य बनकर इसके कार्यक्रम को विशाल पैमाने पर कार्यान्वित करे। पूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद हमारे साथ है। श्रद्धा व भक्ति का बल लेकर परिषद द्वारा समाज के कार्य में लग जाये ।
आओ परिषद के माध्यम से हम हर मानव को प्रेम का संगीत सिखायें । समाज में फैली कुप्रथाओं को हटाकर समाजोत्थान द्वारा उज्ज्वल भविष्य बनायें ।
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