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गुरुदेव श्री के स्वर्गवास के बाद खाचरोद में परिषद का अधिवेशन संघ प्रमुख श्री श्रीमद् वर्तमानाचार्य के शुभ आशीर्वाद के साथ मुनिराज श्री सौभाग्यविजयजी, मुनिराज श्री जयन्तविजयजी, मुनिराज श्री जयप्रभविजयजी, मुनिराज श्री पुण्यविजयजी, मुनिराज श्री भुवनविजय जी के सान्निध्य में सम्पन्न हुवा और वहीं परिषद को अखिल भारतीय रूप दिया गया। ____ उसके बाद संघ प्रमुख श्री के सान्निध्य में आकोली (राजस्थान) में परिषद का अधिवेशन हुवा और परिषद राजस्थान में विस्तृत हुई। उसके अनुपम उद्देश्यों को ज्ञात कर सभी प्रभावित हुवे ।
परिषद का अधिवेशन उसके बाद पू. पा. वर्तमानाचार्य श्री के आचार्य पदोत्सव के बाद श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पर आचार्यवर्य श्रीमद विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी म. के सानिध्य में हुआ। आप श्री के शुभाशीर्वाद से परिषद गतिशील हुई और स्व. गुरुदेव की परिषद के लिये भविष्य की धारणाओं को साकार करने का उत्तरोत्तर प्रयास किया और अखिल भारतीय स्तर पर कार्यक्रम एवं व्यवस्था होती गई।
परिषद के उद्भाव से हम अभी तक कितना आलोकित हए हैं एवं कितना मार्ग प्रशस्त हुआ है इसका सिंहावलोकन करते हैं तो हमारी यह संस्था संगठन के क्षेत्र में सुसंगठित एवं सुदृढ़ है। इसकी प्रत्येक शाखा के सदस्यों में अपने समाज को एकता के सूत्र में बांधते हुए उनमें धार्मिक भावनाओं की ओर प्रेरित करने की क्षमता है।
धार्मिक शिक्षा प्रचार इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य है आबाल वृद्धों को धार्मिक शिक्षा के लिये प्रेरित करना अच्छे आचरण का विकास करना तथा भविष्य में समाज को जागृत रखने हेतु समाज सेवी तरुण युवकों का प्रादुर्भाव होता रहे । प्रत्येक शाखा परिषद इस ओर पूरा ध्यान दे रही है तथा इसमें सफलता भी प्राप्त होती जा रही है।
समाज के आर्थिक विकास पर भी इस संस्था ने ध्यान दिया है। गुरुदेव की कृपा तथा समाज के सहयोग से हमें सफलता अवश्य
मिलेगी। हमारे आर्थिक सहयोग के अनेक पहलू हैं। जिनमें __ महिलाओं के अमूल्य समय का सदुपयोग करना अर्थात् सिलाई
केन्द्रों, हस्तकला केन्द्रों की स्थापना करना । बचत बैंकों के द्वारा सहायता प्रदान करना इत्यादि आर्थिक सहायता के कुछ पहलू हैं जिनमें परिषद सक्रिय होकर कार्य कर रही है। ___ समाज सुधार के क्षेत्र में परिषद व्याप्त बुराइयों को अच्छाइयों में परिवर्तित करना चाहती है-परदा प्रथा, मृत्युभोज एवं दहेज प्रथा कुछ ऐसी बुराइयां हैं जिनके प्रति नवयुवकों में रोष है एवं वह दिन दूर नहीं जबकि इन प्रथाओं का उन्मूलन हो जावेगा।
परिषद के अन्तर्गत बाल परिषदों की स्थापना के लिये संस्था प्रयत्नशील है। नन्हें मुन्हे बालक जो भविष्य में समाज के कर्णधार बनेंगे उनको इन चार उद्देश्यों के सांचों में ढालने का अधिक प्रयत्न किया जाना आवश्यक है।
परिषद के संचालन करने वाले स्वयं कष्ट उठाकर दूसरों की मदद करने को सदा तत्पर रहते हैं। उन्होंने काफी त्याग किया है, कर रहे हैं और करते रहेंगे।
महिला परिषदों में भी अधिक उत्साह है और वे सामाजिक उत्थान तथा धार्मिक शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हुई प्रगति के पथ की ओर बढ़ रही हैं।
परिषद के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये समाज के धर्म प्राण गुरुजनों एवं मुनिराजों का प्रेरणारूपी अमृत सदैव मिलता रहा है और मिलता रहेगा। पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी "मधुकर" जिस समर्पण की भावना से इस परिषद को सहयोग दे रहे हैं वह व्यक्त करना असंभव है उनका प्रेरणादायक मार्गदर्शन ही परिषद की सफलता की कुंजी है।
परिषद की चहुंमुखी उन्नति की कामना करते हुवे परिषद के सभी सदस्यों, पदाधिकारियों एवं मार्गदर्शकों का इस अवसर पर मैं अभिनन्दन करता हुआ आभार प्रदर्शित करता है।
प्राप्त दौलत से सुकृत करो, वह तुम्हें आगे भी सहायक सिद्ध हो सकेगा।
मनुष्य जैसा हराम-सेवन और संग्रहवृत्ति में तल्लीन हो जाता है, वैसा वह यदि प्रभु-भजनमें रहा करे तो उसका बेड़ा पार होते देर नहीं लगती ।
-राजेन्द्र सूरि
राजेन्द्र-ज्योति
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