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परिषद् : क्रान्ति का शंखनाद
परिषद् का नाम सुनते ही समाज के विभिन्न स्तरों पर एक ही प्रतिक्रिया होती है कि संस्था कुछ कर रही है । उसके प्रति प्रेम, विश्वास और आत्मीयता के भाव सर्वत्र दृष्टिगोचर होते हैं। हां, कहीं कहीं विरोध के स्वर भी उभरते हैं, पर वे सैद्धान्तिक या कार्यप्रणाली के कम और व्यक्तिगत अधिक होते हैं। विरोध ही इस बात का सूचक है कि संस्था जीवित है, क्रियाशील है, और प्रतिष्ठा प्राप्त है ।
डॉ. प्रेमसिंह राठौड़
परम पूज्य गुरुदेव प्रभु श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म. के अनुयायी जो "त्रिस्तुतिक समाज" के नाम से जाने जाते हैं मुख्यतः मालवा, मारवाड़ और गुजरात में हैं एवं सुदूर दक्षिण के कई भागों में बने हुए हैं। परमपूज्य श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी कान्ति दर्शी थे । उन्होंने अनुभव किया कि इस बिखरे हुए समाज की "मणियों की माला " बनाने से ही समाज का संगठन मजबूत होगा एवं भावात्मक एकता संभव होगी। ऐसे प्रति वर्ष गुरु सप्तमी को मोहनखेड़ा तीर्थ पर गुरुभक्त बड़ी संख्या में एकत्रित होते हैं, पर इस अवसर पर समाज हित की चर्चा करने का गंभीर वातावरण नहीं बन पाता । इसी को लक्ष्य में रखकर गुरुदेव की प्रेरणा से उनके सन्नद्ध में श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पर परिषद की स्थापना हुई ।
परिषद को अठारह वर्ष हुए हैं। अपने शैशवकाल और उभरती हुई जवानी के क्षणों में संस्था उठी, लड़खड़ाई, गिरी और पुनः अपने पांवों पर खड़ी हुई । परिषद ने भविष्य में पूर्ण आस्था रखकर हर विपरीत परिस्थिति में अडिग रहकर निष्ठावान आगेवानों एवं कार्यकर्ताओं ने आज परिषद को जिस मजबूत और सम्माननीय स्थिति में पहुंचा दिया है, वह सदैव चिरस्मरणीय रहेगी ।
समाज मुख्यतः व्यापारी वर्ग का है, पर युवा पीढ़ी शिक्षित है। देश-विदेश की बदलती हुई परिस्थितियों में अपने आपको सार्थक करने की उनकी अभिलाषाएं हैं। मेरी नजर में परिषद की उपलब्धियों में सबसे प्रमुख स्थान "सामूहिक सामाजिक चेतना निर्माण" को है । समाज की सर्वांगीण उन्नति का महत्व, स्वयं की व्यक्तिगत उन्नति से कम नहीं है, यह बात अब सर्वमान्य हो गई है।
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परिषद के कार्यकर्ता गांव-गांव, नगर-नगर में सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक कार्यक्रमों को यथाशक्ति एवं स्थानीय परिस्थितियों
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के अनुकूल पूरा कर रहे हैं: समय-समय पर आयोजित सम्मेलनों एवं बैठकों में समस्याओं की गहराई तक पहुंच उनके समाधान की प्रवृत्ति संस्था की प्रौढ़ता का सूचक है।
महिलाएं एवं बालकों में भी जाति हो रही है। अब तो केन्द्रीय कार्यकारिणी में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व है एवं महिला परिषद् तथा बाल परिषदों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। महिला सहमहामंत्री इस ओर विशेष ध्यान दे रही हैं ।
आर्थिक क्षेत्रों में " बचत बैंक" योजना लोकप्रिय हुई है एवं शाखा परिषदों का मार्गदर्शन करने के लिये "बैंकिग मंत्री" सक्रिय है। समाज में जिस किसी को सहायता की आवश्यकता हुई, परिषद के माध्यम से उनकी यथासंभव मदद की जाती है ।
धार्मिक शिक्षण की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। ऐसा पाठ्यक्रम निर्माण किया जा रहा है, जिसमें हर सूत्र एवं क्रिया संबंधी सभी प्रश्नों, निज्ञासाओं एवं शंकाओं का युक्तिपूर्वक सम् विवेचन होगा। इससे बुद्धिजीवी युवा पीढ़ी जो सामायिक प्रतिक्रमण, देववंदन आदि से कतराती रहती है, वह इन पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से उन क्रियाओं का महत्व, महिमा और गरिमा को समझ कर उनके करने में गौरव का अनुभव करेंगे एवं आत्म विश्वास की ओर अग्रसर होंगे।
धार्मिक पत्राचार पाठ्यक्रम को मूर्तरूप देने के पूर्व स्थानीय धार्मिक सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता एवं अखिल भारतीय धार्मिक ज्ञानवर्धक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जो अत्यन्त ही लोकप्रिय और उत्साहवर्धक रही धार्मिक शिविर के विधियों को पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी म. "मधुकर" द्वारा रचित "भगवान महावीर ने क्या कहा" पुस्तक दी गई है। एक वर्ष तक प्रतिमाह प्रश्न पत्र दिए जायेंगे। इन सब प्रयोगों का प्रयोजन सर्व साधारण में स्वाध्याय के प्रति रुचि पैदा करना है ।
संक्षेप में परिषद स्व. आचार्यदेव श्रीमद् विजय पतीन्द्रसूरी श्वरजी म. साहब के स्वप्नों को पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्प से निर तर अग्रसर हो रही है। पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी महाराज "मधुकर" का मार्गदर्शन परिषद के लिये संजीवनी रूप है ।
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राजेन्द्रज्योति
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