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त्रिस्तुतिक संघ इन्दौर : विगत ५० वर्ष संवत् १९८५-८६ में इन्दौर नगर में श्री श्वेताम्बर जैन फतेचन्दजी चोपड़ा एव सर्व स्वधर्मी बन्धुओं के कठिन परिश्रम त्रि-स्तुतिक संघ के करीब २१ घर थे। उस समय पर्युषण पर्व एवं से सं. २०१४-१५ में पूर्ण हुआ। खास करके श्रीराजेन्द्र उपाश्रय धार्मिक आराधना के आयोजन धर्मशाला-ओसवालों की एवं पोरवालों के निर्माण में सर्वाधिक सहयोग श्री धूल चन्दजी, श्री घेवरमलजी, की एवं जतीजी के मंदिर, बड़े सराफे में किये जाते थे।
श्री रतनलालजी मेहता का एवं श्री सुकृत फंड कपड़ा मार्केट का रहा।
श्री राजेन्द्र जैन उपाश्रय के नये भवन का शिलान्यास श्री जहारसंवत् १९८६ में मुनिराज श्री तीर्थ विजयजी म. साहब का इन्दौर
मलजी पारेख के करकमलों से हुआ एवं उद्घाटन श्री कन्हैयालालजी में पदार्पण हुआ था। उनके उपदेश से निश्चय किया गया कि अपना
काश्यप रतलाम वालों के करकमलों से हुआ। उपाश्रय का भवन इन्दौर में होना आवश्यक है। तत्पश्चात् विचार कर एक समिति का गठन नीचे लिखे महानुभावों का किया :--
. संवत् २०१८ में चातुर्मास गणाधीश श्री विद्याविजयजी, श्री
कल्याणविजयजी, श्री हेमेन्द्रविजयजी एवं श्री सोभाग्यविजयजी (१) श्री निहालचन्दजी, बालचंदजी, चांदमलजी अग्रवाल,
आदि मुनियों का इन्दौर नगर में हुआ। (२) श्री कस्तूरचंदजी, धूलचन्दजी, घेवरमलजी एवं रतनलालजी
श्री राजेन्द्र जैन उपाश्रय में प्रभु जिनेन्द्रदेव के मन्दिर को मेहता, (३) श्री मथुरालालजी, धनराजजी, जुहारमलजी पारेख,
स्थापना करने का श्रीसंघ के निर्णय से एवं पू. आचार्यदेव के आदेश (४) श्री केसरीमलजी जनाब ।
से भगवान की प्रतिमा आहोर नगर में लाने का निश्चय होने पर समिति के प्रयास से उपाश्रय के जूने भवन को श्रीसंघ ने जेठ
इन्दौर से श्री सूरजमलजी बोहरा, श्री फतेचन्दजी चोपड़ा एवं श्री सुदी ५ सं. १९८८ को खरीद लिया। सं. १९८८ के भादवा बदी मनोहरलालजी मोदी आहोर नगर पधारे और श्रीसंघ आहोर ने ९ को श्री हीराचन्दजी मगनलालजी चोपड़ा के करकमलों द्वारा सहर्ष श्रीबासुपूज्यस्वामीजी की दो प्रतिमा एवं श्री पदमप्रभु पू. गुरुदेव श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी म. साहब का वर्तमान फोटो
स्वामीजी की एक प्रतिमा भेंट की। बिराजमान कर शुभ मुहूर्त किया।
संवत् २०२३ में आचार्य पदवी धारण करने के बाद प्रथम सौभाग्य की बात है कि आचार्य भगवन्त श्रीमद विजयराजेन्द्र
बार श्रीमद विजय विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी मुनिराज श्री देवेन्द्रविजयजी सूरीश्वरजी म. साहब ने इन्दौर नगर में संवत् १९०५ में यतिपणे
आदि मुनि-मंडल सहित इन्दौर पधारे थे, इस उपलक्ष्य में इन्दौर में पू. श्री प्रमोदसुरिजी म. सा. के साथ चातुर्मास किया था।
राजवाड़े के गणेश हाल में श्रीसंघ द्वारा मानपत्र पूज्य आचार्यदेव पू. आचार्यदेव श्री यतीन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. नागदा (म. को एक समारोह आयोजन करके भेंट किया गया। प्र.) बिराजते थे उस समय, इन्दौर के सुश्रावक श्री घेवरमलजी
संवत् २०२५ में श्री बसंतीलालजी पारीख की मातुश्री श्रीमती मेहता एवं श्री धनराजजी पारेख वंदनार्थ गये थे तब उन्हें आचार्य
जासीबाई ने श्रीमद् गुरुदेव श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी का बिंब देव ने प्रेरणा दी उसी शुभ प्रेरणा एवं आशीर्वाद से नूतन उपाश्रय
(प्रतिमाजी) बनवाकर उपाश्रय को भेंट किया। का निर्माण श्रीसंघ के आदेश से श्री घेवरमलजी मेहता, श्री धनराजजी पारेख, श्री जुहारमलजी पारेख, श्री सूरजमलजी बोहरा,
संवत् २०२७ में आचार्य देव श्रीमद् विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वर श्री खूबचन्दजी हस्तीमल पीपाड़ा, श्री पं. जवाहरमलजी, श्री जी, मुनिराज श्री जयन्त विजयजी "मधुकर" आदि मुनि मंडल ने
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उपदेश से श्री मोतीलालजी सेठिया ने श्री ओलीजी का उजमना किया, तन्निमित्त अट्ठाई महोत्सव मनाया गया व रथयात्रा निकाली गई। प्रभावना में नगर निवासी सर्वजाति समाज में प्रति घर गिलास बांटे गये । ओलीजी के उजमने में श्रीपाल रास से संबंधित चित्र प्रदर्शित किये गये । श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहब का अर्ध शताब्दी उत्सव मनाने हेतु यहां पर एक सम्मेलन भी हुआ था।
संवत् २०३० में यहां पर श्री विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज का चातुर्मास हुआ था । नगरजनों ने आचार्य महाराज का प्रवेश बड़ी धूमधाम से करवाया । इस चातुर्मास में श्री नवकार मंत्र की आराधना करवाने का लाभ श्री धरमचन्दजी चंपालालजी नागदा ने लिया । गुरु महाराज के सदुपदेश से गरीबों के लिए सस्ते भाव में
अनाज उपलब्ध किया गया। श्री घासीराम सेठिया ने सोलह उपवास की तपस्या की थी, तन्निमित्त नौ दिन आयंबिल कराये गये और अट्ठाई महोत्सव मनाया गया।
• संवत् २०३१ में श्री जयंतविजयजी महाराज के करकमलों से . यहां के श्री आदीश्वर मंदिर (जुना शहर मंदिर) की प्रतिष्ठा बैसाख सुदी ७ के दिन करवाई गई और मन्दिर पर कलश चढ़ाया गया ।
खाचरौद में नौ जिन मंदिर हैं और एक श्रीमद् विजय राजेन्द्र सुरीश्वरजी महाराज का मंदिर-गुरु मंदिर है । इसके अलावा श्री राजेन्द्र भवन पौषधशाला की सुविशाल दुमंजिली इमारत है। उसमें आयंबिल विभाग, पाठशाला तथा सिलाई-कटाई केन्द्र आदि चलते हैं।
बो. नि. सं. २५०३
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