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________________ ४२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ 000000000000 ०००००००००००० (REAT KAL Saur ORITESH यह बालक अपने शैशव काल में ही बहुत कुछ कर लेगा परन्तु मैं तो यह मानता हूँ कि पूज्य श्री का वरद हस्त एवं उनके सुशिष्य श्री सौभाग्य मुनिजी का मार्गदर्शन हमें उत्साहित करने में निरन्तर आगे रहा वरना बहुत-सी संस्थाएँ कुछ समय के बाद जिस प्रकार लुप्त होती हैं वैसी यह भी लुप्त हो जाती । इस ८ वर्ष के मामूली से समय में भी परिषद ने धर्म ज्योति मासिक प्रकाशन को निरन्तर चालू रखकर भगवान महावीर के सिद्धान्तों को जन-जन तक पहुंचाया है। आज इसके ६२५ से अधिक आजीवन ग्राहक हैं एवं यह पत्र भारत के सब हिस्सों में पहुँचता है। वार्षिक ग्राहक भी हैं परन्तु आजीवन ग्राहकों का मापदण्ड ही पत्रिका का स्थायित्व होता है । सन् १६६७ के नवम्बर का प्रथम अंक से प्रारम्भ होने वाला “धर्म ज्योति" मासिक आज मेवाड़ क्षेत्र का प्रेरणा स्रोत है जिसमें पूज्यश्री का मार्गदर्शन आज इसकी कायापलट कर चुका है। धर्म ज्योति का प्रकाशन ही धर्म ज्योति परिषद का प्रथम चरण है। १६६७ का लोकाशाह जयन्ति का वह पुनीत दिन आज भी हमें स्मरण है जिस दिन पूज्य श्री के मार्गदर्शन से इस पुनीत संस्था "धर्म ज्योति परिषद" का जन्म हुआ। तब पूज्य श्री ने समाज की स्थिति का दिग्दर्शन कराकर सद्कार्य का सन्देश दिया था। धर्म ज्योति परिषद ने सर्वप्रथम 'धर्म ज्योति' मासिक पत्रिका का प्रारम्भ किया था और यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है कि इस ८ वर्ष के समय में कभी कोई अक बन्द नहीं रहा। पूज्य श्री के मार्गदर्शन से कार्यकर्ताओं की सजगता बनी रही। इसी प्रकार धर्म ज्योति परिषद ने विधवा, अनाथ एवं जरूरतमंद छात्रों को भी सहयोग दिया। विधवा सहायता हमारे समाज में अत्यन्त जरूरी है क्योंकि ऐसी अनेक बहिनें सहायता के अभाव में दो समय का खाना भी जुटा नहीं पातीं। यद्यपि काफी काम बाकी है फिर भी जो कार्य अब तक हुआ है वह भी हम पूज्य श्री की देन ही मानते हैं । मोलेला में पूज्य श्री के चातुर्मास के फलस्वरूप १९७२ में एक उपकेन्द्र की स्थापना हुई एवं फिर शाखा के रूप में कार्य फैल गया। आज उस क्षेत्र में मोलेला केन्द्र के माध्यम से भी काफी स्कूल चल रहे हैं व बच्चों में धार्मिक अध्ययन हो रहा है। उधर भी बच्चों की सहायता एवं विधवाओं को सहायता के साथ-साथ पूज्य श्री के उपदेश से सामाजिक अभ्युदय को प्रेरणा मिली एवं उधर समाज ने ऐसे नियम बनाये जिससे कुरीतियों का अन्त होकर नवनिर्माण को चेतना मिली। सन् १९६७ के वर्ष से ही इस रचनात्मक कार्य को ऐसी चेतना मिली कि गाँव-गाँव में नव निर्माण का बिगुल बज उठा । भीलवाड़ा में स्वाध्यायशाला का कार्य, पहूना में सामाजिक फूट का स्वाहा, उदयपुर में भी रचनात्मक प्रवृत्तियों का श्री गणेश एवं सनवाड़ में मूक पशुओं की बलि का अन्त भी पूज्य श्री के मार्गदर्शन एवं उपदेश का ही फल है । आमेट में साहित्य प्रकाशन समिति के माध्यम से भगवान महावीर के उपदेश प्रचार का कार्य भी पूज्य श्री के ही आह्वान का ही प्रतिफल है । सनवाड़ में भगवान महावीर के २५वें निर्वाण शताब्दी के अवसर पर २५०० व्यक्तियों का दारूमांस त्याग का भी निश्चय किया गया सो पूर्ण हुआ तथा स्वाध्याय की कमी को पूरा करने के लिये स्वाध्याय शिविर एवं स्वाध्यायी तैयार करने के लिये महावीर स्वाध्याय केन्द्र की सनवाड़ फतहनगर में स्थापना भी पूज्य श्री के रचनात्मक स्नेह का ही प्रतिफल है । पूज्य श्री का ग्राम-ग्राम में चल रही तमाम ही जन-हितोपयोगी संस्थाओं को आशीर्वाद मिला है । आशा की जाती है कि धर्म ज्योति परिषद मेवाड़ का एक वटवृक्ष बन जावेगा जिसकी छांव में बैठकर प्रत्येक महावीर-पुत्र उस महावीर के मार्ग पर बढ़कर आत्मा से महात्मा एवं गुरु सेपरमात्मा की सीढ़ी तक पहुंचने को गति करने में समर्थ होगा। पूज्य श्री को जिसने भी नजदीक से देखा है, उसने एक नवस्फूर्ती व चेतना पायी है। चाहे बूढ़ा, युवक या बालक हो, स्त्री या पुरुष किसी भी परिस्थिति में क्यों न हो पूज्य श्री से हर समय सीखा है। घनघोर अन्धकार में भी प्रकाश देने वाले पूज्य श्री का सब सम्प्रदाय एवं धर्मों के प्रति समान भाव है। उन्हें किसी पथ या सम्प्रदाय के प्रति मोह नहीं है। उन्होंने सर्वजनहिताय की परम्परा को हमेशा निभाई है। थामला जैसे छोटे से ग्राम में जन्मे पूज्यश्री आज मेवाड़ ही नहीं भारत के कोटि-कोटि लोगों की आशाओं के केन्द्र हैं। समाज को गौरव है कि ऐसे पूज्य श्री के सान्निध्य में मेवाड़ रचनात्मक प्रवृत्तियों के लिए जगा है। पूज्य श्री का जीवन जन-जन के लिये प्रेरणादायी साबित हुआ है और उनका ५० वर्षों का दीक्षा काल भी स्थानकवासी समाज ही नहीं समस्त जैन धर्म के लिये भी गौरव की बात है। पूज्य श्री का अभिनन्दन करते हुए हम उनके चिरायु होने की प्रभु से प्रार्थना करते हैं जिससे कि रचनात्मक कार्य गतिमान रह सके। SHOBAR काक मलमाTIERMIER DINAMATAIlasRITAMAN
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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