________________
स्वागत गान
000000000000
००००००००००००
अमोलख आया होस्वागत करता मन कमल खिलाया हो कोशीथल में मंगल वरते, घर घर आनन्द छाया हो। सारे संघ का माग्य सवाया, गुरुवर आया हो । मरुधर केहरी, मरुधरा तूं, आया तेज सवाया हो। केशर कुंवर का लाडला, मिश्री मुनि माया हो ॥१॥ कन्हैया मुनि जी कमल खिलाया, ज्ञान सरोवर मांही हो। ज्ञान ध्यान में लीन रहे, ठावी पंडिताई हो ॥ मूल मुनि जी मन में भाया, रतलाम सूं आया हो । मुनिराजों का ठाठ देख, जनगण हर्षाया हो ॥२॥ . रूप मुनि जी व्याख्यानी है, जबरो ठाठ लगायो हो । कोशीथल में मुनियों रो, मेलो मनमायो हो। महासती सौभाग्य कुंवर जी, चतर कुंवर जी आला हो। तेज कुवर जी ज्ञान तणां कर दिया उजाला हो ॥३॥ नान कुंवर जी सोहन कुंवर जी आदि ठाणा सो हे हो। त्यागी ने वैरागी म्होटा, मुझ मन मोहे हो। सब को स्वागत करां भाव सूं, आछा आप पधार्या हो । समारोह की छबि बढ़ाई, भविजन तार्या हो ॥ प्रेमवती कहे कोशीथल में, केशर क्यारी छाई हो । गुरु अभिनन्दन की ये घड़ियाँ, अनुपम आई हो ।
यूज
Su..
साध्वी श्री प्रेमवती जी
Son:KA PRENER
भाव भरे श्रद्धा
सुमन
(तर्ज-यदि भला किसी का कर न सको. . . .) गुरु भ्रात, तुम्हारे चरणों में, मैं सादर शीष झुकाता हूँ।
सद्गुरु रत्नाकर सागर हो, निश-दिन तुम गुण गाता हूँ ॥टेर।। ये पूज्य प्रवर्तक स्वामी हैं, और जैन जगत के नामी हैं। शासन की दिव्य विभूति हैं, बलिहारी तुम पर जाता हूँ ।।१।।
इस श्रमण संघ के गरिमामय, अति उच्च पद के धारक हो ।
मेवाड़ संघ के जगमगते, भास्कर को दिल में ध्याता हूँ ॥२॥ अति स्वच्छ सुनिर्मल संयम पालक, गुरुभ्रात आप यशधारी हो । हो सरल स्वभावी देव आपके, शरण में आनन्द पाता हूँ ॥३॥
शुभ आत्म-साधना जीवन में, दिन दिन पल-पल बढ़ती जावे ।
भूलों को मार्ग बताते रहो, मैं यही भावना भाता हूँ ॥४॥ थे भद्रिक भावी सरल स्वभावी, मुनि भारमल जी गुणधारी। है शिष्य उन्हीं के कहलाते, मैं मन में अति हर्षाता हूँ ॥५॥
इस स्वर्ण जयन्ति अभिनन्दन, अवसर पर सुन्दर ठाठ लगा।
मुनि ईन्द्र कहे कोशीथल में, श्रद्धा सुमन चढ़ाता हूँ ॥६॥ यह चार संघ का मेला है, उल्लास भरा यह झमेला है । सब अम्ब गुरु की जय बोलो, मैं भी जयनाद सुनाता हूँ ॥७॥
प्रवर्तक श्री के गुरुभ्राता तपस्वी मुनि श्री इन्द्रमुनि जी
com
.00
| audientedaar
89
or Private
Bergans