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अभिनन्दन स्वर लहरियाँ
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जय जय गुरुवर (राग-त्रिभंगी)
-महासती प्रेमवती जी जय जय गुरुवर, पूज्य परमेश्वर अम्बमुनीश्वर,
गुणधारी। वाणी प्यारी, अमृत थारी,
गुरुवर मोती, दीये ज्योति, गुण गावे अति नरनारी ।।
सूरत सोहती मोहन गारी। पुन्य स्थान है, थामला महान है,
भार मुनीश्वर सच्चे गुरुवर, मेवाड़ शान है, सुखकारी ।
उनके शिष्यवर, गुणधारी ।। बासठ साल में, शुक्ला ज्येष्ठ में,
शासन शृगारा, प्यारा दुल्हारा, __ जन्म श्रेष्ठ है, शुभवारी ।
भविजन तारा, जग ज्हारी । ओसवंश में, सोनी कुल में,
शिष्य सोहन्ता, अति पुण्यवन्ता, मंगलक्षण में, अवतारी॥
है गुणवन्ता जयकारी॥ प्यारानन्दन, अति सुख कन्दन,
मेवाड़ भूषण, टाले दूषण, किशोर चन्दन सुखकारी।
पाप का शोषण हितकारी। सद्गुरु पाया, हर्ष भराया,
शम दम शूरा, संयम पूरा, आनन्द छाया, उर भारी ।।
दोष से दूरा आचारी ।। संसार कतारं पार उतारं,
संघ संचालक, महाव्रत पालक, वैराग्यधारं, सुखकारी।
आत्मा तारक, बलिहारी । करके विचारा, संयम धारा,
प्रेम का वन्दन, है अभिनन्दन, चारित्र प्यारा उपकारी॥
भविजन चन्दन उपकारी ।।
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आनन्द आयो रे
-मदनलाल तातेड़ मोच्छव को आनन्द भाया, कोशीथल में आयो रे दीक्षा स्वर्ण जयन्ति को म्हाने आनन्द आयो रे
आनन्द आयो रे ग्रन्थ ने भेंट करवा, भारी भीड़ लागी ओ कोशीथल को नाम ऊँचो संघ कीधो ओ
आनन्द आयो रे जुग जुग जीओ अम्बा, म्हां सब करां विनति हो। आपका म्हां दर्शन करतां, आनन्द पावां हो। रंग रंगीली धरती भायां, आज कैसी सोवे हो । मां बहिना रा गीता में, शुभ मंगल होवे हो।
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MONDAS
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NAPol Katke
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