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________________ २४ । पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ : परिशिष्ट 000000000000 ०००००००००००० JAHANE JAIN CLES ...... mausy .. ..... इस स्थिति से बचने के लिए हमें संगठित होने की आवश्यकता है । मैं किसी सम्प्रदाय की बुराई नहीं करता किन्तु श्रमण संघ को श्रेष्ठ समझता हूँ क्योंकि यह एकता का प्रतीक है। हमें इसे सुदृढ़ बनाना चाहिए, एक सम्वत्सरी तथा एक पर्व हों, ऐसी भूमिका बनानी चाहिए। हम असंगठित रह अपना ही नुकसान करते हैं। देश बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा है, किन्तु हमारा समाज जो सदियों से कुछ कुण्ठाओं से ग्रस्त है आज भी उन्हें ढो रहा है । दहेज-प्रथा, मृत्यु-भोज तिलक जैसी अनावश्यक कुप्रथाएँ हमें निगलती जा रही है। समाज हमारी सुखशान्ति और नैतिकता को ये कुप्रथाएं भ्रष्ट कर रही हैं । इनसे समाज को छुटकारा दिलाना चाहिए । यह तभी होगा जब समाज की युवाशक्ति सामने आये। समाज को अपने युवकों पर बड़ा भरोसा है, हमारा युवक पढ़ा-लिखा, सभ्य और प्रगतिशील है इसमें कोई सन्देह नहीं, किन्तु असंगठन तथा कुशल नेतृत्व के अभाव में वह अपनी सम्पूर्ण प्रतिमा का उपयोग नहीं कर पा रहा है अत: बुद्धिमान युवाजनों को संगठित होकर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। हमारा युवक उस जगह बड़ी भूल करता है जब वह पश्चिम की नकल करने लगता है। मैं अपने लघु वय साथियों से हार्दिक अपील करता है कि वे अपनी संस्कृति को अपना कर चले, जिससे समाज के वास्तविक उत्थान का मार्ग प्रशस्त हो। आज विश्व, शान्ति और समता का भूखा है। हम भगवान महावीर की शिक्षा के आधार पर विश्व को शान्ति और समता का मार्ग दिखा सकते हैं । किन्तु कब जबकि हम स्वयं उन्हें अपनायें साथ ही हमारे पढ़े-लिखे विद्वान नौजवान साथी महावीर की शिक्षाओं को अन्य भाषाओं में अनुवादित कर उन्हें विदेशों तक और देश के घर-घर में पहुंचाएँ। मैं उन युवकों को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। जिन्होंने जैनोलोजी में पी-एच० डी० किया है तथा जो कर रहे हैं । हमसे कुछ विद्वानों ने आग्रह किया है कि उदयपुर में जैन शोध-संस्थान स्थापित हो, मैं उनकी इस प्रेरणा का स्वागत करता हूँ। हम प्रयत्न करेंगे कि शीघ्र ही उदयपुर में ऐसा संस्थान स्थापित हो सके जहाँ शोध सुविधाएँ हों। जैन धर्म के तत्त्व बड़े यथार्थ, उदात्त तथा उपयोगी हैं किन्तु प्रचार की कमी होने से अभी तक इन्हें विश्व में वह स्थान नहीं मिला जिसके कि वह योग्य हैं । हमें एक जुट होकर ज्ञान प्रचार की दिशा में काम करना चाहिए। छोटे-छोटे गांवों में जैन शाला और पुस्तकालय भी बड़े उपयोगी साबित हो सकते हैं। कुछ तो शालाएं तथा पुस्तकालय हैं किन्तु वे बहुत ही कम हैं। हमें अधिक संख्या में उनकी स्थापना करनी है।। समाज के स्वर्मि बन्धु और असहाय विधवा बहिनों तथा अभावग्रस्त विद्यार्थियों को वास्तविक तथा उपयोगी सहायता मिलनी चाहिए। इस दिशा में पूज्य गुरुदेव श्री की प्रेरणा से स्थापित धर्म ज्योति परिषद सेवारत है, हमें उसे सशक्त और सफल बनाने का पूर्ण प्रयास करना चाहिए। आप और हम सभी एक समाज और एक राष्ट्र के अंग हैं अतः हमें सामूहिक एवं व्यक्तिगत रूप से वे तमाम कर्तव्य निभाने हैं जो हमें पुकार रहे हैं। आज मैं आपके सामने जो कुछ बोल रहा हूं वह आपको उपदेश देने की दृष्टि से नहीं । किन्तु आपका साथी होने के कारण आपके और मेरे मन की बात कह पाया हूँ, मैं भी आपके समान ही हूँ, मुझे भी वही करना है या जो मेरे द्वारा कहा गया, मैं आपसे, अलग नहीं हूँ। अन्त में मैं प्रस्तुत समारोह में उपस्थित हुए सम्माननीय जननेता, राज्याधिकारी, प्रमुख समाज सेवी अग्रगण्य कार्यकर्ता और समस्त स्वमि भाई-बहिनों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। साथ ही पधारे हुए पूज्य मुनिराजों महासतियों को वन्दना करता हुआ आभार प्रदर्शित करता हूँ। मैं कोशीथल श्रावकसंघ को धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता जिसने समारोह को अपने यहाँ आयोजित कर सुव्यवस्था द्वारा इसे सफल बनाया। कोशीथल संघ की महान् सेवाएँ जैन समाज के इतिहास में सर्वदा अमर रहेगी। और अन्त में पूज्य गुरुदेव श्री के सुदीर्घ जीवन की मंगल कामना के साथ हार्दिक अभिनन्दन करता हुआ अपना स्थान ग्रहण करता हूँ। ॥ जय जिनेन्द्र ।। ..... MBER ORAKO Jain Educati -For-price-perconaldee Only waalicomso
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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