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गुरुदेव के गुरुभ्राता, शिष्य-परिवार : एक परिचय | ३१ ।
मधुर वक्ता
श्री शान्ति मुनि जी की सर्वाधिक प्रसिद्धि का कारण उनकी वक्तृत्व कला था । वाणी में एक विशेष 'रस' था कि श्रोताजन झूम उठते ।
मैंने देखा, दिन की अपेक्षा रात्रि में मुनि श्री का प्रवचन बड़े जोरों से खिलता । उनके प्रवचनों में हजारों की उपस्थिति मैंने स्वयं देखी।
प्रवचन कथा प्रधान, गेयात्मकता लिये होता, किन्तु साथ ही एक लय चलती जो श्रोताओं को विभोर करती रहती।
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सुकवि
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श्री शान्ति मुनि जी 'कवि' हैं । उनकी सैकड़ों रचनाएँ हैं किन्तु प्रकाशित बहुत कम । अभी कुछ दिनों पूर्व श्री इन्द्र मुनि जी की प्रेरणा से "श्री शान्ति गीतामत" नामक पुस्तिका प्रकाश में आई है।
श्री शान्ति मुनि जी की रचनाएँ, वैराग्य भक्ति तथा वर्णन प्रधान हैं । अभिव्यक्ति सीधी, सरल और असर कारक है । शब्द योजना सुन्दर और मधुर है । वीर जन्मोत्सव पर लिखि गीतिका की कुछ पंक्तियाँ देखिये
तीन लोक के नायक, सहायक,
हैं जग के सुख कन्द । भवदधि से भविजन को तारण,
प्रकटे त्रिशलानन्द ।। जय जयकार गगन में करले,
सुर वर कोटिक वृन्द । सिद्धारथ पुर खिल उठा है,
इन्द्रपुरी मानिन्द ॥ अज्ञान तिमिर को नाश करन,
प्रभु प्रकटे सूरजचन्द । धर्म नैया के सच्चे खिवैया,
प्रकथत सन्त महन्त ॥ श्री शान्ति मुनि जी का कवित्व मृत नहीं, जीवन्त है। उसमें आशा का सम्बल और उत्साह की गर्जना है।
कस कमर अखण्ड भूमण्डल में, यह जैन ध्वजा लहरा दूंगा।
अज्ञानियों ने फैलाये हैं, वे सब पाखण्ड हटा दूंगा । अभिव्यक्ति की स्पष्टता देखिये
यह काया मेघ की छाया, कटोरा कांच का सुन्दर । छेह पल में दिखाएगा, तो इस पे व्यर्थ घुमराना । जवानी होगी धूल धानी, उतर जाएगा यह पानी ।।
हवेली रंग से रेली, नीलम से है जड़ी कंठी ।
बगीचा रम्य भी संग में, न आता आँख मिच जाना ।। मुनि श्री का कवि 'जैन' है, जैनत्व के गौरव से ओतप्रोत
एक स्वर से सब पुकारें, जैन जयति शासनम् । यह शासन है पाप विनाशक, मोक्ष का दातार है। श्रद्धा धर लीजे सहारा, जैनं जयति शासनम् ।।
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