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३२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
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मुनिबार
कवि अन्य धर्मों के उपास्य के प्रति भी सहिष्णु और गुणानुरागी है
मोरे मन बसिया घनश्याम, हो नन्द जी के लाला । मोर मुकुट शिर सांवरो, तन जग में सोहे ।
मधुरी बजावे कानो बांसुरी, सब के मन मोहे ।। विद्यानुरागी
मुनिश्री बहुत अच्छे विद्यानुरागी हैं। अध्ययन और स्वाध्याय इनके रुचिकर उपक्रम है। प्रवर्तक श्री के सानिध्य से, शास्त्र-ज्ञान भी अच्छा उपाजित किया।
विद्यानुराग का परिचय इससे मिल जाता है कि जब मैं 'जैन सिद्धान्त' की परीक्षाओं में सम्मिलित हआ, तब मेरा तो शैशवकाल जो मुख्यतया अध्ययन के लिए ही होता है, था, किन्तु मुनिश्री तो प्रौढ़ता के निकट थे, फिर भी विद्यानुराग इतना गहरा था कि मेरे साथ अध्ययन में बराबर चलते रहे, और जैन सिद्धान्ताचार्य और अन्य कई परीक्षाएँ हमने साथ-साथ सम्पन्न की।
मुनिश्री स्वभाव से सरल, मिलनसार तथा मधुर हैं, इधर मेवाड़ में उनका पूज्य श्री और श्रद्धेय श्री भारमल जी महाराज तथा प्रवर्तक श्री के साथ बहुत सघन विचरण रहा बहुत अधिक जन समुदाय उन्हें आज मी सप्रेम याद करता है । विगत कुछ वर्षों से, मुनिश्री सकारण मालवा के गांव हातोद में ठहरे हुए हैं। श्री इन्द्रमुनि जी महाराज
ये श्री भारमलजी महाराज के शिष्य और प्रवर्तक श्री के गुरु भ्राता हैं ।
पदराड़ा (सेरा-प्रान्त-मेवाड़) निवासी, सकरींग जी सुथार पिता तथा कंकूबाई माता थीं। संवत् १६८३ के बैसाख मास में जन्म हुआ। तेरह वर्ष की लघुवय में ही विदुषी महासतीजी श्री सज्जन कुँवरजी के सम्पर्क में आये और वैराग्य मार्ग की तरफ उन्मुख हुए।
संवत् १६६६ आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी गुरुवार के दिन वल्लभनगर (ऊठाला) में, पूज्य श्री मोतीलालजी महाराज के पवित्र सान्निध्य में दीक्षा सम्पन्न हुई । इस अवसर पर श्री मगन मुनिजी की दीक्षा भी साथ ही सम्पन्न हुई।
विगत छत्तीस वर्ष से मुनिश्री संयम मार्ग में प्रवृत्त है।
स्वभाव से विनोदप्रिय श्री इन्द्रमुनिजी शरीर से स्थूल किन्तु वाणी से मधुर है । व्याख्यान की इनकी अपनी छटा है । सम्पूर्ण व्याख्यान में एक सरसता चलती रहती है। आदर्श तपस्वी
इन्होंने सर्वाधिक प्रगति तप के क्षेत्र में की। एक माह, इकवीस दिन, पन्द्रह दिन अठाई आदि तप कई बार किये । अभी भी तप के क्षेत्र में आगे बढ़ने का प्रयास प्राय: किया ही करते हैं। श्री मगन मुनिजी 'रसिक'
__ श्री मगन मुनि जी झांकरा (मदारिया) में श्री नाथूसिंहजी राठौड़ के यहाँ जन्म पाये । माता का नाम गेंदाबाई था।
जन्म समय संवत् १९८५ का माना जाता है।
लगभग ग्यारह वर्ष की वय में ठीकरवास निवासी श्री छोगालालजी बम्बकी की प्रेरणा से जैनधर्म का निकट से परिचय हुआ। श्रद्धेय श्री जोधराजजी महाराज, सम्बन्ध में 'काका' लगते थे अत: जैनत्व के संस्कारों का नितान्त अभाव तो नहीं था किन्तु श्री बम्बकीजी की प्रेरणा से उन्हें फलवान बनने का अवसर मिल गया।
श्री मगन मुनिजी की दीक्षा ऊंठाला (वल्लभ नगर) में संवत् १६६६ आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी, गुरुवार को श्री इन्द्रमुनिजी के साथ ही सम्पन्न हुई ।
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