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________________ ०००००००००००० ०००००००००००० गुरुदेव के गुरुभ्राता, शिष्य-परिवार : एक परिचय ANS/ p3 TRAM Co... EPORENA UFIN .... . वाय THIMATIL श्रद्धेय गुरुदेव श्री अम्बालाल जी महाराज के दिव्य जीवन का संक्षिप्त परिचय पाठक पिछले पृष्ठों पर पढ़ चुके हैं । उनके जीवन की अन्तर्यात्रा एवं शिक्षा वचनों का स्वाध्याय करने के पश्चात् जीवन का आचार एवं विचार पक्ष स्वत: उजागर हो उठता है । व्यक्तित्व का शाब्दिक परिचय लम्बा न कर जीवंत गुणों का निदर्शन एवं उनके स्वतः अनुभव से निःसृत वाणी का संचयन स्वयं ही गुरुदेव के समग्र व्यक्तित्व को प्रकट कर देते हैं। गुरुवर्य के जीवन-दर्शन के पश्चात् उनके गुरुभ्राता एवं शिष्य परिवार आदि का संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जाता है। प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज के-एक गीत का पद्य है कि 'ज्योति से ज्योति जगाते रहो' इसके अनुसार ज्योति से ज्योति जगाते रहना यही तो है, किसी सद्पुरुष का प्रशस्तोपक्रम । प्रत्येक व्यक्तित्व में एक सम्प्रेषण तत्त्व होता है, वह यत्र-तत्र संप्रेषित होता रहता है। पतनोन्मुख जीवन का सम्प्रेषण कलुषित होता है जबकि ऊर्ध्वमुखी जीवन का संप्रेषण ज्योतिर्मय । पूज्य गुरुदेव श्री अपनी जीवनयात्रा में केवल स्वयं को बनाने में ही नहीं लगे रहे, अपने साथ कई ऐसे विरल व्यक्तित्व भी इनसे तैयार हुए जो अपनी क्षमता के अनुसार गुरु-पथ पर अग्रसर हैं। श्री शान्ति मुनि जी महाराज 'जेठाणा' मालवे में कोई अच्छा-सा गांव है। श्री शान्ति मुनि जी का वही जन्मस्थल है। श्री जसराज जी, फूलांबाई, इनके माता-पिता थे। जन्म समय वि० सं० १६७४ का कार्तिक मास है। सोलह वर्ष की उम्र में अपने पिता के साथ ऋषि संप्रदाय में संयम ग्रहण किया किन्तु किन्हीं कारणों से ऋषि संप्रदाय में दोनों मुनिराजों का निभाव नहीं हो सका। संवत् १९६१ में दोनों मुनियों का पूज्य श्री मोतीलाल जी महाराज, पूज्य प्रवर्तक श्री आदि से दलोट में परिचय हुआ। दोनों मुनि, यद्यपि संयम पथ पर अग्रसर थे किन्तु सहकार के अभाव में उनकी संयम नैया मझधार में डगमगा रही थी। उन्हें तत्काल सबल सहयोग की आवश्यकता थी और वह आवश्यकता पूरी हुई, पूज्य गुरुदेव श्री द्वारा । सांप्रदायिक परंपरा के अनुरूप सैलाना में अक्षयतृतीया के दिन पुनरारोपण के साथ दोनों मुनियों को मेवाड़ मुनिसंघ में सम्मिलित कर लिया गया । ... गुरु का नाम तो मुनि श्री के पिता-मुनि श्री जसवन्त राय जी का ही धरा, किन्तु श्री शान्ति मुनि जी पूज्य श्री को ही गुरु-स्वरूप मानते रहे तथा वरते रहे। पूज्य श्री के सानिध्य में श्री शान्ति मुनि जी की जीवन-यात्रा के प्रमुख सहयोगी, पूज्य प्रवर्तक श्री भी थे । श्री शान्ति मुनि जी के जीवन-निर्माण में पूज्य श्री का तो प्रमुख हिस्सा था ही, प्रवर्तक श्री का कम असर नहीं था। ...... सव 90000 OMCOM Jain Education-intermational -For- rate-personaldesiOnly
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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