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No--0--0-0-0-0-0-0--0-0-0--0--0--0--0--0-o-m १ श्री रिखबदास जी महाराज लिखित प्रस्तुत चर्चा
ऐतिहासिक महत्त्व की दृष्टि से यहाँ दी जा रही है। समन्वय-प्रधान वर्तमान युग में इस चर्चा से कोई सज्जन । अन्यथा भाव न लेकर मात्र एक ऐतिहासिक विरासत के रूप में देखें।
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श्री रिषबदासजी महाराज कृत
तात्त्वि क- चर्चा
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म्यान
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तेरा पंथ्या री चरचा। आचारंग नामा सुत्तर नवमा अधीन मे। चोथे उदसे श्री भगवंत महावीर सामी । छद मस्त पणे कंचण मांत्त पाप कीधो नही १। भगवती रे पनर मे सतके। श्री भगवंत महावीर सामी ने । केवल उपज्यां पछे । भगवान गोतम सामी ने कह्यो । हे गोतम अणुकंपा दया रे वासते । गोसाला ने वचायो सो अणुकंपा कही । पण सावज अंणुकंपा कण ही सुतर मे चाली नही २॥ उपासग दसारा आठमा अधिनमे । सेणक राजा जीव मार्गणा मने कराया ३। गन्याता सुतर रे पाचमे अधिन मे। थावर चा पुत्त सुषदेव सन्यासी रो । सरावग सुदरसण सेठ कह्यो। भगवान रो मारग बना मूल धर्म जी रा दोय भेद । आगार नो वनो ते श्रावग नो । अणगार नो वनो ते साधू नो। दोय प्रकार रो वनो करतो जीव । आठ कर्म षपावीने मुगत रे वीषे जाय ४। भगवती सुतर रे बारमे सत के पेले उदेस्ये। संषजी री भारज्या पोषलीजी सरावग रो वनो कीधो । सात आठ पग सामी गइ । वनणा नमसकार कीधी। पोषलीजी श्रावग संषजी ने वनणा कीधी पछे । दुजा सरावग संषजी उपरे । करोध करतां ने नंद ताने । श्री भगवान वनणा करता ने वरज्या। जतरे भगवान रा मुडा आगे। सगलाइ श्रावग संषजी न वनणा नमसकार कीधी। श्रावग रा वना माहे पाप हुवे तो। भगवान वरज्या क्यु नही ५। श्री भगवती रे सातमे सतके छठे उदेसे । जीव री अणुकंपा कीधा जीव रे साता वेदनी। पुन्य रा ठाट बद्धे पाप कह्यो नही ६ । भगवती सुतर रे इग्यारमे सतके । बारमे उदसे असी भद्र पुत्त सरावग ने बीजा सरावगा वनणा कीधी ७। उवाइ सुत्तर मे अमडजीरा सात से। चेला संथारो करती वेलां। अमडजी श्रावग ने नमो थूणं कीधो । उवाइ सूतर मे अमडजी श्रावग सो घरा पारणो कीधो। पाप हवे तो सोघरां पाप कांने लगावता । । दसमी कालक सुतर मे तीजा अधिन मे । ग्रहस्ती रे घरे जाय बेसो तो। अनाचार लागो छ दशमो १० । वेदकलप सुत्त मे चोथे उदेसे । ग्रहस्ती रे घरे बेठी ने वषांण करणो नही । कदाचित काम पड़े तो। उभो थको एक गाथा सुणावणी ११ । नशीतरे आठमे उदेस्ये । न्याती अन्याती सरावग असरावग । आदि रात अषी रात राषे तो प्राइछीत आवे । जणीमे अर्थ रो निरणो कीधो। असतरी सहेत । भोजन सहेत । प्रगरा सहेत होवे जणीने राषे तो चोमासा प्राइछित आवे १२ । वेद कलप सुतर मे पेले उदेसे। असतरी होवे जठे साधने न कलपे आरज्या ने कल्पे। पुरष हवे जठे आरज्या ने न कल्पे साध ने कलपे १३॥ भगवती रा परनरमा सतक मे । भगवान श्री महावीर सामी ने । गोसालो ग्रहस्थी थको। च्यार महीना एक जायगा मै रह्या । राज
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