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१८ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज - अभिनन्दन ग्रन्थ
की विनती लेकर आ पहुँचा था, अन्ततोगत्वा आयड़ में उदयपुर संघ की विनती स्वीकार हुई । उदयपुर संघ इस सफलता से नये उल्लास से भर गया । गुरुदेव श्री ने आसपास के क्षेत्रों में अपना विचरण प्रारम्भ रखा ।
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डूंगला में जैन शिक्षण शिविर का समायोजन हो रहा था। जनता की हार्दिक इच्छा को महत्त्व देकर गुरुदेव
श्री डूंगला पधारे | यहां आये हुए बच्चों और अध्यापकों को अपनी मंगल वाणी द्वारा प्रबोध दिया ।
गुरुदेव श्री के सान्निध्य में यह शिविर कई विशेषताओं के साथ सम्पन्न हुआ ।
यथासमय गुरुदेव श्री अपने शिष्यों सहित उदयपुर नगर में चातुर्मासार्थं प्रविष्ट हुए । उदयपुर की धर्मप्रिय जनता ने बड़े उत्साहपूर्वक भावभीना स्वागत किया ।
उदयपुर का यह चातुर्मास कई दृष्टियों से बड़ा महत्त्वपूर्ण रहा ।
पर्युषण में कत्लखाने बन्द रहे ।
नवरात्रि के अवसर पर होने वाले बलिदान बन्द रहे । राजस्थान सरकार द्वारा पारित प्रस्ताव की कार्यान्विति का कार्य स्थानीय कार्यकर्ताओं ने बड़ी मुस्तैदी के साथ किया । इतना ही नहीं, दूरवर्ती कई गाँवों में कार्यकर्ताओं ने पहुँच कर बलिबन्दी के कार्य को मूर्त स्वरूप देने का भगीरथ प्रयत्न किया ।
सांवत्सरिक महापर्व पर पच्चीस सौ पौषध की अभूतपूर्व साधना सम्पन्न हुई। पूरे चातुर्मास भर में कई तरह से सुन्दर तपाराधना चलती रही ।
यह चातुर्मास जनसम्पर्क तथा धर्मप्रचार की दृष्टि से बड़ा प्रशंसनीय रहा ।
गुरुदेव श्री को विदाई दी, उस अवसर पर दश सहस्र से अधिक जैन जैनेतर जनता का समूह उपस्थित था । उदयपुर के लिये इतना बड़ा चल समारोह ऐसा कहा जाता है कि 'अभूतपूर्व' था ।
जो आग को न बुझा सके वह नीर क्या ? जो लक्ष्य को न भेद सके वह तीर क्या ? जो क्षुधा को तृप्त न कर सके वह क्षीर क्या ? जो स्वयं को न जीत सके वह वीर क्या ?
- 'अम्बागुरु-सुवचन'
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