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कर्म-सिद्धान्त : मनन और मीमांसा | २३१
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ये छओं दिशाओं से गृहीत जीव प्रदेश के क्षेत्र में स्थित, अचल, सूक्ष्म, चतुःस्पर्शी कर्म प्रायोग्य अनन्तानन्त परमाणुओं से बने होते हैं । आत्मा सब प्रदेशों से कमों को आकृष्ट करती है। हर कर्म-स्कन्ध का सभी आत्म-प्रदेशों पर बन्धन होता है और वे कर्मस्कन्ध ज्ञानावरणत्व आदि भिन्न-भिन्न प्रकृतियों में निर्मित होते हैं।
प्रत्येक आत्म-प्रदेश पर अनन्तानन्त कर्म पुद्गल स्कन्ध चिपके रहते हैं । कर्मों का वेदन काल उदयावस्था है। कर्मोदय दो प्रकार का है-१. प्रदेशोदय ,२. विपाकोदय ।
जिन कर्मों का भोग केवल प्रदेशों में ही होता है वह प्रदेशोदय है। जो कर्म शुभ-अशुभ फल देकर नष्ट होते हैं वह विपाकोदय है । कृषक अनेक बीजों को बोता है पर सभी बीज फलित नहीं होते । उनके फलित होने में भी अनुकूल सामग्री अपेक्षित रहती है।
कर्मों का विपाकोदय ही आत्मगुण को रोकता है और नवीन कर्मों को बांधता है। प्रदेशोदय में न नवीन कर्मों को सृजन करने की क्षमता है और न आत्मगुणों को रोकने की ही। आत्मगुण कर्मों की विपाक अवस्था से कुछ अंशों में सदा अनावृत्त रहता है । इसी अनावृत्ति से आत्मदीप की लौ सदा जलती रहती है। कर्मों के हजार-हजार आवरण होने पर भी किसी भी आवरण में ऐसी क्षमता नहीं है जो उसकी ज्योति को सर्वथा ढांक ले। इसी शक्ति के आधार पर आत्मा कमी अनात्मा नहीं बनता। कर्म बन्धन की प्रक्रिया
बन्धन की प्रक्रिया चार प्रकार की है। १. प्रकृतिबन्ध, २. स्थितिबन्ध, ३. अनुभागबन्ध, ४. प्रदेशबन्ध ।
१. ग्रहण के समय कर्म-पुद्गल एक रूप होते हैं पर बन्धकाल में उनमें आत्मा के ज्ञान, दर्शन आदि भिन्नभिन्न गुणों को रोकने का भिन्न-भिन्न स्वभाव हो जाता है, यह प्रकृतिबन्ध है।
२. उनमें काल का निर्णय स्थितिबन्ध है।
३. आत्म परिणामों की तीव्रता और मन्दता के अनुरूप कर्म-बन्धन में तीव्र-रस और मन्द रस का होना अनुभागबन्ध है।
४. कर्म-पुद्गलों की संख्या निणिति या आत्मा और कर्म का एकीभाव प्रदेशबन्ध है।
कर्मग्रन्थ में बन्धन की यह प्रक्रिया मोदक के उदाहरण से समझाई गई है। मोदक पित्त नाशक है या कफ वर्धक, यह उसके स्वभाव पर निर्भर है।
वह कितने काल तक टिकेगा, यह उसकी स्थिति का परिणाम है । उसकी मधुरता का तारतम्य रस पर
१ तत्त्वार्थसूत्र ८/२५-नाम प्रत्ययाः सर्वतो योग विशेषात् सूक्ष्मक क्षेत्रावगाढ़स्थिताः सर्वात्मप्रदेशेष्वनन्तानन्त
प्रदेशाः । २ (क) आचार्य भिक्षु-नव सद्भाव निर्णय (डाल ८।४) सघला प्रदेश आस्रव द्वार है सघला प्रदेश कर्म प्रवेश ।
(ख) भगवती ॥३।११३ ३ स्थानाङ्ग स्था.२ ४ मोह और नाम इन दो कर्मों के विपाक से ही कर्म बँधते हैं । अन्य कर्म बन्धन नहीं करते । ५ मूलाचार-१२२१ पयडि ठिदि अणुभागप्पदेशबंधो य चउविहो होइ । ६ (क) कर्म काण्ड, प्रकृति समुत्कीर्तनाधिकार-१-२
(ख) आचार्य श्री तुलसी-जैन सिद्धान्त दीपिका ४-७ ७ आचार्य श्री तुलसी-जैन सिद्धान्त दीपिका ४-१० ८ वही ४-११ ६ वही १२
EasawalkalkaMESMARAT
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