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________________ १७४ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ ०००००००००००० ०००००००००००० BHUM SETTITLESS .... पहले कई वर्ष बन्द रही, फिर चालू हो गई थी। पूज्यश्री ने राजाजी को प्रतिबोध देकर उसे फिर से सदा के लिए बन्द करवादी। बदनौर के ठाकुर साहब भी गुरुदेव श्री के अनन्य भक्तों में से एक थे। उन्होंने गुरुदेवश्री के बदनौर पदार्पण के अवसर एक सौ बीस गाँवों में अगता पलाया। झाडौल चातुर्मास में नवरात्रि के अवसर पर कई बलिदान होने वाले थे। पूज्यश्री का वहीं चातुर्मास था। पुजारी पूज्यश्री के उपदेशों से प्रभावित था। भाव (शरीर में देवता का आवेश लक्षित होता है तो उसे भाव आना कहते हैं) में आकर उसने उपस्थित जन-समुदाय के समक्ष कहा कि भाइयो ! यहाँ पूज्यश्री का चातुर्मास है। अतः कोई बलिदान नहीं होगा ! वास्तव में वहाँ कोई बलि नहीं हुई। राशमी में पूज्यश्री का वर्षावास प्रवास था । वहाँ कुछ दिनों तक वर्षा नहीं हुई। परम्परागत अन्धविश्वास ऐसे अवसर पर अधिक उमर आया करते है। हिंसक लोगों का एक बहुत बड़ा दल एक बड़े मस्त पाड़े को लेकर नगर के निकट ही पहाड़ी पर, जहाँ देवी का स्थान है, पहुंचा। देवी के लिये वहाँ किये जाने वाले बलिदान का तरीका भी बड़ा क्रूर था । पाड़े को काट कर उसके शरीर को ठेठ ऊपर से नीचे लुढ़का दिया जाता था । उस पाड़े का भी यही हस्र होने वाला था। सारे नगर में इस बात की बड़ी चर्चा थी। पूज्यश्री के कान पर यह बात पहुंची। पास ही उनके एक युवक मनोहरलाल पोखरना खड़ा था । पूज्यश्री से प्रेरित हो वह तत्काल पहाड़ी पर चढ़ गया। सैकड़ों व्यक्ति आसपास खड़े रोमांचित-से एक बीभत्स दृश्य देखने को आतुर थे। ढोल-ढमाके, झालर-डंके पूरी तेज रफ्तार से बज रहे थे। तभी मनोहरजी आगे बढ़े और एक ही झटके से रसी काटकर उन्होंने पाड़े को खुला कर दिया। वे उस विशाल जन-समूह में से पाड़े को हाँककर नीचे ले आये । बड़ी गजब की शक्ति आ गई थी उस वणिक्-युबक में । हिंसक दल अत्यधिक क्रुद्ध होकर दौड़ पड़ा । किन्तु मनोहरजी पाड़े सहित थाने में दाखिल हो गये। थोड़ी देर बाद ही आसमान में उमड़-घुमड़कर बादल छा गये और इतने जोरों से बरसे कि धरती की सारी प्यास बुझा दी। वर्षा तो होती ही। किन्तु यदि वह बलि दे दी गई होती तो बलि-प्रथा के प्रति विश्वास की एक नई कड़ी और जुड़ जाती। जो जीवन विश्व-हित के लिए समर्पित हो जाता है वह उस नदी के समान बहा करता है, जो जिधर भी जाती है, दोनों किनारों को हरा-भरा कर देती है। पूज्यश्री सचमुच सरिता के समान थे। वे जिधर चले, उधर उपकार, त्याग, तप के सैकड़ों-हजारों फूल खिलते रहे। बदनौर ठाकुर साहब की कन्या का विवाह था । क्षत्रियों में विवाह के अवसर पर अतिशय हिंसाएँ होती हैं। पूज्यश्री बदनौर ही विराजित थे । ठाकुर साहब को विवाह में हिंसा नहीं करने का उपदेश दिया। पूज्यश्री ने कहा-"विवाह से दो जीवन मिलकर बनने-बढ़ने का निर्णय करते हैं। ऐसे अवसर पर किन्हीं जीवों के बने-बनाये जीवन को नष्ट-भ्रष्ट करना अन्याय है। ठाक्र साहब ने विवाह में जीवों की हिंसा पर रोक लगा दी। दूध और फल-फूल से बरातियों को सन्तुष्ट किया, मांस उपलब्ध नहीं किया । पूज्यश्री की थोड़ी-सी प्रेरणा से, होने वाला भयंकर हिंसाकाण्ड टल गया। पूज्यश्री एकता के बड़े समर्थक थे । वे साधु-समाज और श्रावक-समाज में सैद्धान्तिक आधार पर सहयोगात्मक ऐक्य चाहते थे। . किन्हीं विशेष कारणों से उस समय मेवाड़ के मुनि-संघ में भेद-भाव चल रहा था। प्रतिपक्ष, जो पूज्यश्री के बढ़ते प्रभाव से खिन्न था, कई तरह के मिथ्या आरोप लगाकर मनस्तोष करने में लगा था। अपनी भूल कहाँ है, इस बात को ढूंढ़ने को कोई तैयार नहीं था। आरोपों का वातावरण था । पूज्यश्री शासन-हित में सब कुछ सहते रहते थे । पूज्यश्री के शान्तिपूर्ण व्यवहार से सारा समाज बड़ा प्रभावित था। फलत: जो पक्ष आरोप लगाने में व्यस्त था, उसे विकट सामाजिक प्रतीकार का सामना भी करना पड़ता । क्रिया की प्रतिक्रिया होती ही है। - 00008 @ ORARO म GENERanataram काबननाaam
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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