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________________ श्री बालकृष्ण जी महाराज | १५६ उपर्युक्त घटना एक अनुश्रुति पर आधारित है, जो मेवाड़ की मुनि परम्परा में बहुत प्रसिद्ध है । श्री गुलाबचन्दजी महाराज, जो इस घटना के सबसे बड़े साक्ष्य थे, संवत् १९४० से कई वर्ष बाद तक उपस्थित थे । अतः घटना के मौलिक अस्तित्व से नकारना आसान नहीं है । उपर्युक्त घटना में एक चमत्कार अवश्य है और वह असम्भव सा प्रतीत होता है। किन्तु क्या लोक-जीवन चमत्कारों से सर्वथा शून्य भी कभी रहा है ? आज का युग वैज्ञानिक युग रहा है । तथ्यात्मकता आज की पहली शर्त है। किन्तु विश्व आज भी ऐसी घटनाओं से रहित नहीं है, जहाँ वैज्ञानिक शोध स्वयं मौन साध लिया करता है । स्वर्गवास श्री बालकृष्णजी महाराज का जीवन एक स्फुरित जीवन था । वैभव के विराट् दलदल से आलिप्त मोरबी दरबार को उद्बोधित करना और गुलाबसिंहजी जैसे क्षत्रिय युवक को वैराग्य-प्लावित कर देना अपने आप में कम महत्त्वपूर्ण बात नहीं थी। इससे पाठक स्वयं अनुमान लगा सकते हैं कि मुनिश्री का जीवन कितना ओज-तेज से परिपूर्ण रहा होगा ! श्री बालकृष्णजी महाराज ने अपने से अनजाने ऐसे गुजरात काठियावाड़ जैसे दूरस्थ प्रदेशों में जाकर धर्म की अद्भुत ज्योति जगाई। इससे उनकी प्रचार भ्रमण की उत्कृष्ट जिज्ञासा का परिचय मिलता है । मेवाड़ में श्री रिखबदासजी महाराज के पास दीक्षित होकर कितने वर्ष सेवा में रहे तथा कब और कितने ठाणों से काठियावाड़ की तरफ गये, उधर कितने वर्ष रहे, कितने शिष्य हुए, ये सारी बातें अज्ञात हैं। श्री गुलाबचन्दजी महाराज उनके अवश्य काठियावाड़ी शिष्य थे, जो कई वर्षों तक मेवाड़ में विचरे, उनकी कई कलाकृतियाँ भी उपलब्ध हैं तथा उनकी सेवा करने वाले कई गृहस्थों ने उनका कई तरह से परिचय भी दिया । 'ओच्छव' की पुस्तक से ज्ञात होता है कि श्री बालकृष्णजी महाराज का स्वर्गवास पालनपुर में विक्रम संवत् १९४६ में हुआ । इसकी प्रामाणिकता एक पत्र से मिलती है। पत्र धान्गधा से श्री अमरसिंहजी महाराज ठा० ३ ने पालनपुर लिखा था, जिसमें मुनियों के प्रति प्रेम-भाव व्यक्त करते हुए, महाराज के स्वर्गवास के बाद मेवाड़ जाने के औचित्य को स्वीकार किया। इससे ज्ञात होता है कि श्री बालकृष्णजी महाराज का स्वर्गवास पालनपुर में हुआ। वहाँ से चार ठाणा से चातुर्मास कर रहे थे। मुनिश्री के स्वर्गवास के बाद ३ ठाणा रह गये, वे मेवाड़ साधु-साध्वियों से मिलने आये । पत्र विक्रम संवत् १६४९ के कार्तिक का लिखा होने से सिद्ध है कि उसी वर्ष चातुर्मास में श्री बालकृष्णजी महाराज का स्वर्गवास हुआ । २ १ ओर आपने लिखा सो हमने मंजूर किया है का हे ते के महाराज सरगवासी हूवा तारे आपने आपका खेत्र में जाना चाहिए और साधुजी और साधवीजी कूं मिलना चाहिए। - ( पत्रांश) २ स्वंत १६४६ ना कारतक सुद ११ ने वार चंद्र लखीतंग आपने निरंतर अभीवंदन करनार पुज अमरसीजी नी वती बने पुरषक बंदा (पत्रांश) 000000000000 Jour 42 000000000000 4000DPLODO
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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