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________________ कलाकार श्री गुलाबचंद्र जी महाराज ०००००००००००० ०००००००००००० JANANT क TITHILI MUS NICOL Ca JADOLAR ......: श्री गुलाबचन्द्र जी महाराज काठियावाड़ बिहारी श्री बालकृष्ण जी महाराज के शिष्य थे। इनका जन्मस्थान मोरबी (काठियावाड़) था। प्रायः ऐसी अनुश्रुति है कि ये मोरबी दरबार के पुत्र थे । श्री बालकृष्ण जी महाराज के तात्त्विक उपदेशों से प्रभावित हो ये दीक्षित होने को तत्पर हुए। संयम धारण करने की उत्कट अभिलाषा होते हुए भी एक बहुत बड़ी बाधा अनुमति लेनी थी। अनुमति मोरबी दरबार की अपेक्षित थी, जिसका मिलना लगभग असम्भव था । एक प्रसंग बना एक ऐसा चमत्कारिक प्रसंग बना जो असम्भव-सा लगता है । किन्तु असम्भव घटना भी जब घट जाती है . तो वह चमत्कार कहलाने लगती है । एक मुस्लिम सूबेदार ने मुनि के पात्र में माँस होने का कलंक लगाया। बात यह थी कि वह सूबेदार एक जबरदस्त मंत्रवादी था। उसने अपने प्रयोग से राजमहल से गोचरी लेकर लौटते हुए मुनि के आहार को मांस के रूप में परिणत कर दिया । उसने जनता के समक्ष यह सब दिखाया भी। इससे जैनधर्म की बड़ी निन्दा हुई । एक दिन बालकृष्ण जी महाराज स्वयं महल से गोचरी लेकर आये । मार्ग में उस सूबेदार ने फिर वही शैतानी शुरू कर दी। किन्तु इस बार उसकी दाल नहीं गली । उसका प्रयोग असफल गया। सभी लोगों ने पात्र में शुद्ध आहार देखा । सूबेदार अपने प्रयोग में असफल होकर उसी समय गले तक भूमि में धंस गया । इस घटना से चतुर्दिक श्री बालकृष्ण जी महाराज और जैनधर्म की विजय पताका फरफराने लगी। मोरबी दरबार के आग्रह से स्वामीजी ने सूबेदार को मांगलिक सुनाया और वह स्वस्थ रूप में बाहर आ गया । इस अवसर पर श्री बालकृष्ण जी महाराज ने श्री गुलाबसिंह को आज्ञा देने का आग्रह किया, जिसे टालना दरबार के लिए असम्भव था। अद्भत प्रभाव से प्रभावित हो मोरबी दरबार ने श्री गुलाबसिंह को दीक्षा की अनुमति प्रदान की। कहते हैं, उस समय एक लाख रुपया खर्च कर मोरबी दरबार ने श्री गुलाबसिंह जी का दीक्षा-महोत्सव मनाया । यह घटना संवत् १६०० के लगभग होना सम्भव लगता है । क्योंकि संवत् १९३८ की उनकी हस्तलिखित पट्टावली उपलब्ध है। लिखावट में अड़तीस वर्ष का अनुभव प्रतीत होता है। पुष्ट प्रमाण के उपलब्ध न होने से केवल अनुमान ही तो लगाया जा सकता है । श्री गुलाबचन्द जी महाराज अपने गुरुजी के साथ कई वर्षों तक काठियावाड़-गुजरात में बिचरे, फिर मेवाड़ में भी आये। लिखते हुए खेद होता है कि श्री बालकृष्ण जी महाराज के स्वर्गवास के बाद यह सिंघाड़ा लगभग विशृखलिन हो गया। श्री गुलाबचन्द जी महाराज एकाकी रह गये । उस स्थिति में भी कई वर्षों तक वे मेवाड़ में विचरते रहे। उनके गुरु की तरह इनके साथ भी कई चमत्कारिक घटनाएँ जुड़ी हुई हैं। कहते हैं, एक बार ये खमणोर में किसी चमत्कारिक विद्या के साधन में लगे हुए थे। उन्हें लगातार मौन रहना था । किन्तु एक दिन, सम्भवतः वह दिन संवत्सरी का था, श्रावकों के अति आग्रह से वे व्याख्यान देने लगे। चालू व्याख्यान में एक स्त्री एक टोकरी में कुछ कचरा भरकर लाई और मुनि को देने लगी--"लो !" महाराज संकोच में पड़ गये । एक श्रावक ने झोला फैलाकर कहा-"ला, मुझे दे !" और जब स्त्री ने टोकरी औंधी की तो उसमें से फूल गिरे। वह श्रावक तो थोड़े ही दिनों में धनाढ्य बन गया। किन्तु, कहते हैं, मुनिराज की बुद्धि तभी से भ्रमित हो गई। तदनन्तर श्री गुलाबचन्द जी महाराज अव्यवस्थित हो गये और उसी स्थिति में वे मेवाड़ छोड़कर कहीं अन्यत्र चले गये । उनका स्वर्गवास कहाँ और कब हुआ, इस विषय में अब तक कोई जानकारी नहीं मिल पाई। HATITIATIMES १ श्री बालकृष्ण जी महाराज तत सिष लपीकतं गुलाबचन्द । -बड़ी पट्टावली 00000 COUNO Mein-education-International FORPrice.posonelesednk
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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