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पूज्य आचार्य श्री मानजी स्वामी | १४६
नियम अभी भी चालू है
संत का प्रभाव अद्भुत होता है। ज्यों-ज्यों सूर्य बढ़ता है, त्यों-त्यों प्रकाश फैलता जाता है। संत भी सूर्य होता है। वह प्रकाश पुञ्ज होता है। जिधर संत जाता है, जन-जीवन के अन्तर्मन में प्रकाश भरता रहता ।
पूज्य श्री मानजी स्वामी अद्भुत उपकारी महात्मा थे। उनके द्वारा अनेकों उपकार सम्पन्न हुये । 'पालका' रायपुर के निकट एक छोटा-सा गाँव है। पूज्य श्री मानजी स्वामी का एकदा वहाँ मंगलमय पदापंण हुआ । नगर के नरनारियों को बड़ा धर्मलाभ प्राप्त हुआ । स्थानीय तेली समाज 'अमाड़ी' अधिक बोया करता था । अमाड़ी को सड़ाकर रेशे निकाले जाते हैं। इसमें बड़ी हिंसा होती थी । पूज्य श्री ने तेली समाज को उद्बोधित कर जाग्रत किया । अमाड़ी के महापाप से उन्हें बचाने का उपदेश दिया । फलतः तेली समाज ने सदा सर्वदा के लिए अमाड़ी बोने और सड़ाने का त्याग कर दिया। आज भी पालका का तेली समाज उक्त नियम पर दृढ़ है और वह खुशहाल भी है ।
चरणों में सिंह बैठा देखा
नाथद्वारा में भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी को लड्डु फेंकने की एक प्राचीन प्रथा है। इस कार्य में श्री नाथजी की पूजा करने वाले महाराज भी भाग लिया करते थे ।
एक बार चतुर्थी के दिन महल से महाराज ने तिल का लहू फेंका। वह लहू श्री हीरालाल जी हींगड़ को जाकर लगा । श्री हींगड़ जी का मकान पास ही था। हींगड़जी ने जिधर से लड्डु आया वापस उधर ही फेंक दिया और वह श्री महन्त जी को जा लगा। इस पर वे बड़े कुपित हुये। यह ज्ञात होते देरी नहीं लगी कि लड्डू हीरालाल जी ने फेंका है। हीरालाल जी को ज्ञात हो ही गया कि मोदक महन्त जी के जा लगा है । वे मारे भय के कांपने लगे, अपने बचाव का कोई मार्ग नहीं देख, वे सीधे श्री मानजी स्वामी की सेवा में पहुँच गये। श्री मानजी स्वामी उस समय फौज के नोहरे में विराजित थे । शरण पहुँच कर सामायिक करके बैठ गये । राज्य आरक्षी दल हीरालालजी को ढूंढ़ता नोहरे में पहुँचा तो, हीरालाल जी पाट के पास सामायिक में बैठे थे। श्री मानजी स्वामी पाट पर विराजित थे साथ ही उन्होंने
बैठा हुआ है। सिंह देखते ही आरक्षी दल घबराया वह सिंह गुर्रा कर सामने आने लगा तो सभी डर कर भाग
यह भी देखा कि पाट के नीचे एक नौ हत्या केसरी सिंह भी आगे नहीं बढ़ सका और कुछ आगे बढ़ने का यत्न किया भी तो खड़े हुये । दल के अध्यक्ष ने महन्तजी को यह घटना बताई तो महन्तजी ने कहा । हीरालाल मानजी स्वामी की शरण में चला गया तो अब हम उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। मान बाबा बड़े चमत्कारी हैं। हीरालालजी को क्षमा मिल गई । उपर्युक्त घटना, श्री चौथमल जी सुराणा ने नाथद्वारा में सुनाई ।
एक भविष्यवाणी
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महाराणा फतहसिंह राणावंशीय एक सामान्य परिवार के युवक थे। वे किसी कार्यवश कांकरोली आये थे । मार्ग में पूज्य श्रीमानजी स्वामी मिले । फतहसिंह जी नमस्कार करके आगे बढ़े ही थे कि पूज्य श्री ने शिष्यों को कहायह युवक मेवाड़ का महाराणा होने वाला है । गुरु-शिष्य की यह बात जाते हुए फतहसिंह ने सुनी तो उन्होंने उसे अपने प्रति की गई एक व्यंग्यात्मक बात समझी । किन्तु अपने घर पहुँचते ही पूज्य श्री की सच्चाई उन्हें सन्देश आया हुआ था कि फतहसिंह मेवाड़ की राजवही को पाने के लिए शीघ्र आयें।
मिल गई । उदयपुर
महाराणा फतहसिंह पूज्य श्री की चमाकारिक भविष्यवाणी से बड़े प्रभावित हुए वे पूज्य श्री की सेवाएँ करना चाहते थे । किन्तु अवसर नहीं मिल सका । कारण यह था कि फतहसिंह जी के सिंहासनारूढ़ होने के एक वर्ष बाद ही पूज्य श्री का स्वर्गवास हो गया ।
स्वर्गवास
पूज्य श्री मानजी स्वामी अपने जीवन में बड़े प्रखर थे । उन्होने मेवाड़ के धर्मं- शासन को बड़ी तेजस्विता के साथ चलाया, चमकाया । पूज्य श्री का जीवनकाल धर्मशासन का स्वर्णिम समय रहा। कुल सित्तर वर्ष संयम पालन किया, नौ वर्ष की वय में दीक्षा ग्रहण की। इस तरह कुल गुण्यासी वर्ष की दीर्घ वय पाये ।
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...S.Bharti / www.jaihelibrary.org