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________________ पूज्य आचार्यश्री मानजी स्वामी | १४७ ०००००००००००० ०००००००००००० खेड़ी खमणौर के पास बनास नदी के किनारे बसा एक छोटा-सा गाँव है। वहाँ भैरव का एक स्थान है, जो अपने युग का बड़ा प्रसिद्ध स्थान रहा है । एक बार मानजी स्वामी खेड़ी के पास होकर विचर रहे थे। इतने में वर्षा आ गई। पावस से बचने को स्वामीजी शिष्यों सहित उस देवस्थान में ठहर गये । देवजी भोपा, जो उस देवस्थान की सेवा करता था, पूजा करने को आया। मुनियों को देखते ही आगबबूला हो बकने लगा। उसका कहना था कि तुम लोगों ने मेरे देवरे को अशुद्ध कर दिया । मानजी स्वामी ने कहा ---यहाँ कौन है, जो अशुद्ध हो ? भोपा ने कहा---यह भैरू' का स्थान है। स्वामीजी ने कहा-क्या तुमने भैरव को देखा है ? उसने कहा-भैरू दिखाई नहीं देते। स्वामीजी ने कहा-वाह ! उम्रभर तुमने आरतियाँ उतारी, किन्तु भैरव तुम्हें मिले ही नहीं ! जरा, अपने भैरव को बुला तो सही, हम भी देखें। स्वामीजी की इस विनोद भरी बात से भोपा और तिलमिला गया । स्वामीजी ने कहा-अच्छा, भैरू तुम्हारे हों तो तुम बुलाओ और यदि हमारे होंगे तो हमारे सामने आएंगे ! बिचारा भोपा उस देवशक्ति को कैसे बुला सकता था? वह बड़ा परेशान था । उसने कहा-क्या आप बुला सकते हो? स्वामीजी ने कहा-साधु किसी को बुलाते नहीं, साधुओं के पास तो वे स्वतः ही आते हैं ! ऐसा कहा ही था कि कहते हैं, दो भैरव-आकृतियाँ उपस्थित होकर स्वामीजी की चरणोपासना करने लगीं। देवजी भोपा चकित थे। देवों के विलीन होने पर भोपा स्वामीजी के चरणों में लोट गया और कहने लगा-मेरे तो देवता आप हैं ! स्वामीजी धर्म सन्देश देकर आगे बढ़े। उस देवस्थान पर जब से चमत्कार हुआ, उस स्थान की प्रशंसा दिनोदिन बढ़ती गई। भोपा परिवार मदिरा-मांस का त्यागी था। उस परिवार के पास एक चादर थी जो बाद में सलोदा वाले भोपा जगरूपजी के हाथ लगी। आज भी वह चादर भोपाजी दिखाते हैं, जो अति जीर्ण है । उसे मानजी स्वामी की बताते हैं। वे कहते हैं कि यह चादर मानजी स्वामी से मिली। किन्तु मुनि तो चादर देते नहीं, ऐसी संभावना है कि स्वामीजी ने वह चादर उतार कर सुखाने को धरी होगी। फिर चमत्कार देखकर भोपा ने उसे पवित्र चादर समझकर उठा लिया होगा ! 'आगम के अनमोल रत्न' के अनुसार वह चादर मानजी स्वामी के दाह-संस्कार में से अभंग बचकर निकली थी। उसे नाथद्वारा संघ ने लम्बे समय तक अपने यहाँ रखा । बाद में वह सलोदा वाले भोपा को दे दी गई। किन्तु यह बात ठीक नहीं बैठती। नाथद्वारा संघ भोपा को चादर क्यों दे ? जो चादर इतना चमत्कार अपने साथ रखती है, उसे संघ किसी भोपा को दे दे, यह जंचता नहीं।। सलोदावाले भोपा जगरूपजी ने कहा कि यह चादर उन्हें खेड़ी से मिली। उन्होंने बताया-मुझे स्वप्न में दर्शाव हुआ। तदनुसार मैं यह चादर खेड़ी से ले आया। चादर बहुत ही जीर्ण तार-तार हो रही है । यत्र-तत्र फटी हुई है। इसे धागे से सी रखा है। भोपाजी ने कहा-इसे सुई से नहीं, सूल से सिया करते हैं। देवी ने इन्कार किया उदयपुर के पास नखावली एक छोटा-सा गांव है । वहाँ एक बड़ा जैन मन्दिर है । ठीक उसके सामने देवी का मन्दिर है । वहाँ बलिदान होता था। जैन मन्दिर के बिलकुल सामने निकट ही खून की धार बहा करती जिसे देख कर धर्मप्रिय जनता बड़ी दुःखी थी। नखावली के एक बूढ़े ब्राह्मण ने हमको बताया कि एक बार मानजी स्वामी का वहाँ आना हुआ। उन्हें जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने देवी के पुजारी और अन्य जनता को बलि बन्द करने के लिए कहा। किन्तु इसके लिए कोई तैयार नहीं हुआ। वे लोग कहने लगे कि अगर साक्षात् देवी मनाई कर दे तो हम बलि बन्द कर देंगे ! कहते हैं कि तत्काल ही एक दिव्य आकृति ने प्रस्तुत हो बलि बन्द करने का आदेश दे दिया और वह आकृति विलीन हो गई। सारी जनता और पुजारी चकित से देखते ही रह गये। En ommemona For Private & Personal Use Only ::.5. 8 4 /www.jainelibrary.org
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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