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शिरोमणिचन्द्र जैन, इन्दोर
गुण सागर सद्गुरु ! प्रभो, वन्दन करूं अनेक । तुम सा रक्षक जगत में, मिला न कोऊ एक ॥१॥ विश्व विनायक देव हो, कृपा सिन्धु करुणेश । कोटि कोटि मम वन्दना, हे विश्वेश ! महेश !!२॥ चरण-युगल गुरुदेव के, ऋद्धि-सिद्धि दातार । अति कोमल भव-मय हरण, भक्ति-मुक्ति-भण्डार ॥३॥ काल व्याल है डस रहा, बाल-तरुण अरु वृद्ध । हो अशान्त सब डोलते, ऋषि-मुनि तापस सिद्ध ॥४॥ सब जग रक्षक आप हैं, हैं अनाथ के नाथ । मुझ पापी के सीस पर, धरो दया का हाथ ॥५॥ विमल पताका भक्ति की, फहराये ब्रह्माण्ड । राग-द्वेष छल-छिद्रके, अंत करो सब काण्ड ॥६॥ जे गुरु-पद कू नित भजे, सेवे करि करि ध्यान । जाने आत्तम तत्त्व कू, पावे मोक्ष निदान ॥७॥ दीन रहुँ निस-दिन सदा, करू नहीं अभिमान । ध्यान रहे श्री चरण में, पाऊँ पद निर्वान ॥८॥ गुण गाऊँ किस विध प्रमो, महा मूढ़ अति छोट । करुणा कर अपनाइये, राखो अपनी ओट ||६||
गुण-सागर
सद्गुरु प्रभो!
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0 मुनि सुरेश 'प्रियदर्शी
धन्य धन्य है आर्य भूमि, अरु धन्य धन्य मेवाड़ धरा । धन्य धन्य मेवाड़ शिरोमणि, पूज्य अम्ब मुनि निखरा ।।
जन-जन की
मेवाड़ मालवा महाराष्ट्र में, किया आपने धर्म प्रचार । घर घर में फैलाया आपने, शान्त-सुखद प्यारा "जिन सार" ।
KAND
हरना
सब पीर
सरल स्वभावी भद्रमना हो, समतावंत मुनि ज्ञानी। रत्न त्रय की वृद्धि करते, सत्य सत्य तुम हो ध्यानी ॥
धीर वीर हैं आप मुनि जी, धर्म धुरन्धर अरु गम्भीर । श्रद्धा-सुमन यह रहे चरण में, जन जन की हरना सब पीर ।।
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mariBatti