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________________ ८२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ 000000000000 ०००००००००००० TENABINHA CATE उगणी सौ बरियासी माही, मगसर महिनो लागो हो। मंगलवाड़ में संजम लीदो, भाग जागो हो । चेलो ॥११॥ ज्ञान ध्यान सु भर्यो खजानो, विनयशील निरमानी हो । आगम अरथ तत्त्व ने जाण्यो, वण्या सुज्ञानी हो ॥ चेलो ॥१२॥ देलवाड़ा में पूज्य गुरुरी, सेवा खूब ही कीनी हो । अन्तेवासी वणिया पूरी, महिमा लीनी हो ॥ चेला ॥१३॥ पूज्य प्रवर्तक आप दीपता, आतम कारज सारे हो। अम्बा गुरुवर-अम्बा गुरुवर, सभी पुकारे हो । चेलो ॥१४॥ वीर भूमि रा वीर धीर हो, नित उठ पगल्या पूजू हो। गुरुवर री सु किरपा सु, म्हूँ निरभय गूंजू हो। चेलो ।।१५।। मारवाड़, मेवाड़, मालवो, गुर्जर बम्बई विचर्या हो । ज्ञान सुणायो भव जीवाँ रा, कारज सुधऱ्या हो । चेलो ॥१६॥ कोमल हिरदो घणो आपरो, बोले मिठी वाणी हो। मन लुभावणी सूरत प्यारी, ज्ञानी घ्यानी हो । चेलो ॥१७॥ तप संजम में शूरा पूरा, पाँच महाव्रत पाले हो । ब्रह्मचर्य रो तेज अनोखो, दूषण टाले हो । चेलो ॥१८॥ उगर विहारी आप बतावो, मगत परी रो गेलो हो। भीड़ पड़े भक्तारी भारी, लागे मेलो हो । चेलो ॥१६॥ तारा बिच में चन्दो सौवे, नभ मण्डल रे माही हो। ज्यू चेलारी मण्डली में सोवे, आप सदा ही हो । चेलो ॥२०॥ दिव्य जीवन की जगमग ज्योती, सागर ज्यू गंभीरा हो । मेवाड़ देश रा असली हो अनमोल हीरा हो । चेलो ॥२०॥ पच्चास वर्ष रो निरमल संजम, बड़ भागी ही पावे हो । हिवड़े हरष हिलौरी उठे, पार न आवे हो। चेलो ॥२२॥ धन्य धरती धन्य जननी गुरुवर, सबने धन्य बणाया हो। श्रमण संघ में जैन दिवाकर, सब मन भाया हो । चेलो ॥२३॥ जल सैं भरिया सागर मोटा, गागर में नी मावे हो। घणा गुणारी खान गुरु, गुण गाया न जावे हो । चेलो ॥२४॥ सौ सौ बार करूं' अभिनन्दन, मंगल मोद मनाऊँ हो। जुग जुग रहिजो अमर भावना पल-पल माऊँ हो । चेलो ॥२५॥ मला भाग सुं सतगुरु मिलिया, दरशन कर हुलषाऊँ हो। 'रसिक' आपरा शरणा में, बलिहारी जाऊँ हो । चेलो ॥२६॥ 800BAR Jain Education intensitoma
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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