SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ooooooooo000 000000000000 |10000000044 [] जिनेन्द्र मुनि 'काव्यतीर्थ' मधुर ग्राम्र-सम जीवन जिनका मुनि गुणी गुण गाने से अभिनन्दन उनका करने से, पावन बनती स्वयं आत्मा, तिरे सिन्धु कलि हरने से । मेवाड़ संघ शिरोमणि हैं ये - और प्रवर्तक ज्ञानी हैं । गुणी बड़े रत्नाकर जैसे अम्बालाल जी स्वामी हैं ॥ यथा नाम गुण तथा आप में, सहज रूप से पाते हैं । मधुर आम्र सम जीवन जिनका, देखा महिमा गाते हैं | दिव्य साधना जीवन पावन, सतत प्रेरणाप्रद जग में। ज्ञान ज्योति को लेकर इनसे, चलो प्रगति के सुमग में ॥ जैनागम इतिहास सिन्धु में, गोते गहन लगाते हैं । अन्वेषण कर भाव रत्न, जीवन को आप सजाते हैं ।। मंगलमय उपदेश आपका, ज्ञानामृत बरसाता है । सम्यक् श्रद्धा श्रवण ग्रहण से, हृदय-कमल विकसाता है । सौम्य चन्द्र धवल चांदनी को लख कमलिनी खिलती है । दर्शन से तत्त्व गुण गरिमा से, जन-मन-शांति मिलती है ।। शासन साधक ! सजग पथिक तव चरण में हो वन्दन । दीक्षा-स्वर्ण जयन्ती आई, करता 'जिनेन्द्र' अभिनन्दन || [ भक्त 'राव' ( सोन्याणा ) [ १ ] काम अरु क्रोध लोभ तृष्णा से रहित सदा, वाके ही में संत धारी हैं । अज्ञानिक जीव बंधन में, उनके छुड़ाइवे में आप उपकारी हैं | शीतल सुभाव अरु ज्ञान के समुद्र अति, सर्व रितु चन्द्र सम किरती तुमारी है । पूज्य श्री मेवाड़ हुके ज्ञानी गुरु अम्बालाल, आप हैकि भक्ति ताको, कोटि बलिहारी है ॥ [ २ ] मात प्यार बाई हुँ कि कोख से जनम भयो, पिता श्री किशोर चन्द्र जी के आप जाये हैं । सोनी बंस आप हुं को उज्ज्वल विख्यात सदा, वांके कुल हुं में आप दीपक बनि आये हैं ॥ मुनि होय आप फिर रवि ज्युं प्रकाश कीनों, पूज्य श्री मेवार हुंको याते पद पाये हैं । अज्ञानीक अंधकार दूर करि वे एक, विधना ने आप हुंकु मणि ज्युँ बनाये हैं । □囹圄鬥 गुन आप तन केहि परे भव दो कवित्त ✩✩
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy