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कविरत्न श्री चन्दन मुनि (पंजाबी) (लगभग पचास हिन्दी काव्यों के रचयिता]
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भक्ति-सुमनार्चना
मनोभिलाषा पूरी करते,
भक्त जिन्हों से सारे । पंचम आरे के वे प्यारे,
कल्प-वृक्ष हैं न्यारे॥
न समता ।
एक दिवस क्या एक घड़ी के,
संयम की बने अभी के साधू को है,
स्वयं इन्द्र
भी
नमता ।।
राज्य उदयपुर के अन्तर्गत,
गाँव थामला प्यारा । उगनी सौ बासठ में उसमें,
चमका एक सितारा ॥
(२) उसको ही 'अम्बा गुरु' कहकर,
आदर करती दुनिया । उनके पावन चरण-कमल में,
सिर है धरती दुनिया ॥
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अर्द्धशती फिर बीती जिनको,
संयम को अपनाए। क्यों न दुनिया चरण-कमल में,
सादर शीश झुकाए॥
(८) देख त्याग वैराग्य आपका,
विस्मित दुनिया वाले । हर इक के न वश में ऐसा,
निर्मल संयम पाले ॥
(6) ज्योतिष के जैनागम के हैं,
भारी ज्ञाता ज्ञानी। इससे बढ़कर सबसे चढ़कर,
मिश्री जैसी वानी॥
(१०) कहें सदा मिथ्यात्व तजे बिन,
करनी निष्फल सारी। तिरना हो तो समकित के बस,
बनिये परम पुजारी ।।
'भारमल्लजी ज्ञानी गुरु से,
___ संयम को क्या पाया। इक आदर्श श्रमण बन करके,
दुनिया को दिखलाया ।
वर्ष बयासी मगसिर शुक्ला,
तिथि आठों बड़ भागी। संयम को अपनाते ही बस,
किस्मत जग की जागी।।
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