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श्री गणेश मुनि शास्त्री
[प्रसिद्ध साहित्यकार एवं बता]
अम्बा गुरु को निज जीवन सम, जग का जीवन है प्यारा । इसीलिए अहं उदघोषित महाप्रतों को स्वीकारा ॥
भद्रमना गुरुदेव भारमल, सूर्य- रश्मियों के स्पर्शन से दर्शन का अध्ययन गहन कर पढ़ महनीय लिया सच्चा । अपरिग्रह व्रतधारी का है, ज्ञान-निधान यही अच्छा ॥ रुचि स्वाध्याय ध्यान में रखते, मिलनसार हैं आप महान । सरलात्मा को मिलता ही है, उच्चस्तरीय सदा सम्मान ॥ श्रमण संघ के पूज्य प्रवर्तक, पद को गतमद संचालक मेवाड़ संघ के सेवक बन कर विरल विभूति दीप्त मुखमुद्रा, गंभीरिमा का अन्त नहीं । वर्तमान युग के स्वर हैं ये, देखा ऐसा सन्त नहीं ॥ 'धर्म ज्योति' परिषद के प्रेरक, संस्थापक शालाओं के । ज्योतिमान मोती होते हैं, कंठस्थित मालाओं के ॥ संघ संगठन सेवा श्रद्धा, शिक्षा, दीक्षा सत्साहित्य | अम्बा गुरु की पुण्य दृष्टि से, पूर्ण पल्लवन पाते नित्य ।। जहाँ जहाँ भी घूमे मुनिवर, अभय चाहने वालों को ये अभिनन्दन अम्बा गुरुवर का, स्थानकवासी जैन संघ का 'मुनि गणेश शास्त्री' का वन्दन, सन्तों के अभिनन्दन को भी
D प्रकाश मुनि 'प्रेम'
भाग्योदय से इन्हें मिले । सूर्य विकासी क्यों न सिले ।
गुणरत्नाकर
भूमे धावक लेते आये
बहते हैं । रहते हैं ।
चरणों में शरणों में ।।
करना है कर्तव्य महान । समझा जाये यह सम्मान ॥ अभिनन्दन स्वीकारा जाय । माना जाता मोक्षोपाय ॥
देखा ऐसा
संत
नहीं !
मेवाड़ शिरोमणि पूज्य प्रवर्तक, मुनिवर अम्बालाल महान । तेरी गौरव गरिमा से अवगत हैं, सुनिए सकल जहान | श्रमण श्रेष्ठ त्यागी बैरागी, श्रमण संघ के हो श्रृंगार । तेरे परम पुनीत चरण में वन्दन है, मेरा शत बार ॥ गहरे ज्ञाता आगम के, रत्नाकर सा जीवन गम्भीर । तेरे दर्शन करके स्वामी, करे पलायन अन्तर पीर ॥ चहुँ दिश में तब गौरव गरिमा, फैल रही है अपरम्पार । गुण गाते हैं सादर गुरुवर, दुनियाँ के लाखों नर-नार ॥ शिष्य समझकर मुझको अपना रहे कृपा मुझ पर दरबार । शुभाशीष पाकर स्वामी का, हो जाऊँ भवसागर पार ॥
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