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________________ - बालकवि सुभाष मुनि 'सुमन' हो कोटिशः अभिनन्दन ! the 000000000000 000000000000 ho to the tic धरातल मेवाड़ पे, एक जीव जन्मा आई, विरल विभूति यह, सन्तोष भण्डार है। धन्य हुआ ग्राम वह, धन्य हई मातेश्वरी, प्रियधर्मी पिताजी भी, कुल सिणगार है। 'इन्दु तत्त्व षटकाय, युगल में ज्येष्ठ शुक्ला, तृतीया का शुभ दिन, थामला मुझार है। कहत "सुभाष मुनि" सरल-सरल महा, तपोधनी अम्बा गुरु, विनय अपार है। . [२] मानवता की प्रतिभा भी, समुज्ज्वल प्रदर्शित, महान विराट मूर्ति, ज्ञान गुणधारी है। सरोवर सम आप, जीवन पवित्र महा, नहीं है कटुता तव, वाणी प्रिय भारी है। शुद्ध मोती मोतीलाल, संघ में रसाल महा, भद्रमना भारमल, गुरु उपकारी है। कहत “सुभाष मुनि" सुखकारी हितकारी, ऐसे महा योगीराज, वन्दना हमारी है। [३] खूब किया ज्ञान-ध्यान, गुरु सेवा खूब भरी, विवेक से ओत-प्रोत, जीवन तुम्हारा है। दृढ़ता त्याग मय, मिलनसार प्रकृति भी, करुणा के रत्नाकर, भिक्षुक हमारा है। मुखाकृति दमके सदा, चमकता तेज अति, जीवन में कोष भरा, दया से अपारा है। कहत “सुभाष मुनि" अनुकम्पा शील मुनि, । भक्त है अटलभारी, महिमा को विस्तारा है। दोहा यश कीर्ति चमके सदा, रहे हमेश अविचल । दीर्घायु हो मुनीन्द्र जी, उपकारी अविरल ।। १।। जीवन तेरा धन्य है, धन तेरा अवतार । सफल करी है कूख को, सफल हवे किरतार ।। २।। मारवाड़-मेवाड़ में, किया धर्म उत्थान । मालव ने महाराष्ट्र में, गुजरात देश महान ।। ३ ।। गुण गरिमा फैल रही, चारों ही दिशी माय । बने यशस्वी जयवन्त, प्रवर्तक सुखदाय ।। ४ ।। संयम साधना सफलकारी, पूरे पचास वर्ष । अभिनन्दन कोटिशः 'सुमन', हो रहा जनमन हर्ष ।। ५ ।। to the to PA TOON 圖圖圖圖 www.janellorary.org
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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