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। मरुधर केसरी, प्रवर्तक मुनि श्री मिश्रीमल जी महाराज
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अभिनंदन
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मनहर-छंद चौखी चितवनवारो षट्काय रक्षनारो, प्राणी मात्र प्यारो वांरो हृदय विशाल है। निजातमा साधनारो, अनेकों को तार नारो, सरल स्वभाव जांरो, क्रिया भी कमाल है। हिय हार सुमतारो कियो कुमता को टारो, योगी मतवारो सारो, ध्येय जो रसाल है । चम्पा को दुलारो, श्री हर्ष उजियारो महा, पूज्य मोती शिष्य गुनि मुनि अम्बालाल है ॥१॥
दृग रस ग्रह विधु' ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया को, थांवला मेवाड़ जन्म लिनो जयकार है। चख वसु निधि धारा, अगहन सुदि पाख, अष्टमी को छोड़ी अघ, भये अणागार है। करम करन अस्त, व्यस्त हुए साधना में, त्याग के समस्तवाद, स्याद्वाद धार है। ज्ञान में मगन लगी, लगन अमर होन, देशना सुदिव्य देत, लेत भव्य सार है ॥२॥
दोहा पृथ्वी पर पढ़िया प्रवर, मिले घना मुनिराज । इसो सरल मिलनो कठिन, अम्बा जिसड़ो आज ॥
१ वि० सं० १९६२
. २ वि० सं० १९८२
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