SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथ : सन्देश-वन्दन कोटि कोटि वन्दनार..... किमीकि उन्होंने मानव भव सार्थक किया... हम सब इस तथ्य से भली भांति परिचित हैं कि यह मानव भव दुर्लभ हैं। इस दुर्लभ मानव भव को यों ही भोग विलास में नष्ट नहीं करना चाहिए। इस मानव भव को प्राप्त करने के लिए देवता भी तरसते रहते हैं, किन्तु हम जिन्हें यह भव प्राप्त हुआ है इसे भौतिकता की चकाचौंध में डूबकर बर्बाद कर रहे हैं। जो ज्ञानी होते हैं, पुण्यवान होते हैं वे इसके महत्व को जानकर इसका सही उपयोग करते हैं। प्रातः स्मरणीय, साहित्य मनीषी, व्याख्यान वाचस्पति आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने इस तथ्य को समझ लिया था और यही कारण रहा है कि उन्होंने अपने मानव भव को सार्थक करने के लिए विश्व पूज्य प्रातः स्मरणीय श्री मज्जैनाचार्य गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. की सेवा में उपस्थित होकर संयम व्रत अंगीकार कर अपने आपको साधना में लगाकर अपना मानव भव सार्थक किया। शासगा भारपणाकार आज जब पूज्य गुरुदेव के दीक्षा शताब्दी वर्ष के अवसर पर स्मारक ग्रंथ का प्रकाशन हो रहा है तो मन अति प्रसन्नता का अनुभव कर रहा है। मैं इस आयोजन की सफलता की हार्दिक शुभकामना करता हूं और परमाराध्य गुरुदेव के श्री चरणों में कोटिश वंदन करता हूं। माणमामलापकायाकल्प प्रति, जाड ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण' श्री मोहनखेड़ा तीर्थ गणेशमल गुलाबचंदजी वजापत प्रधान सम्पादक आहोर श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ *DY AYUBURNYRYNY RYNERERERX RX RX RXNXNXR2 (37) AXRXDXDXDXDXDYRYSYAZSXRYRXDYDXSXNXXRynx Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy