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________________ यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथ : सन्देश- वन्दन कोटि कोटि वन्दनारे... किडकि भूले भटकों के आश्रय दाता थे.... * प्रत्येक व्यक्ति बुद्धिमान नहीं होता, बुद्धिमान होता है, तो विवेकवान नहीं होता। सांसारिकता और आध्यात्मिकता में भेद करने में समर्थ नहीं होता। व्यक्ति खाओ, पीओ और मौज उड़ाओं को ही अपने जीवन का लक्ष्य मानकर अज्ञानान्धकार में भटकता रहता है। ऐसे भूले भटके लोगों को अज्ञानान्धकार से निकालकर ज्ञान का प्रकाश प्रदान करने वाले सच्चे गुरुदेव होते हैं। छोक कामावलि + ऐसे ही सुगुरुदेव थे हमारे गुरुदेव आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. । वे सही अर्थों में मार्गदर्शक थे, पथ प्रदर्शक थे। वे जीवन भर भूल-भटके व्यक्तियों को अज्ञानान्धकार से निकालने का प्रयास करते रहे। प्रतिबोध देते रहे। यह तो हमारा ही दुर्भाग्य रहा कि हम उनके द्वारा दिए गए उपदेशों को सही ढंग से समझ नहीं पाए और इस अमूल्य जीवन को भव संसार के जाल में उलझाए रखा। जब यह ज्ञात हुआ कि परम श्रद्धेय गुरुदेव आचार्यश्री के दीक्षा शताब्दी वर्ष के अवसर पर एक स्मारक ग्रंथ का प्रकाशन हो रहा है, तो मन अति प्रसन्न हुआ। आपके इस आयोजन की सफलता के लिए मैं हृदय की गहराई से शुभकामना करते हुए परम पूज्य गुरुदेव के पावन श्री चरणों में वंदन करता हूं। मिश्रीमल, नरपतराज महेन्द्रकुमार, मुकेशकुमार राणावत ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण' टीपटुर, बैंगलोर, दुजाणा, श्री मोहनखेड़ा तीर्थयात्रा प्रति, प्रधान सम्पादक श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ XXXNXNXNXNXNXNXNX SYRYNY RYNE RESERXAYAXS2 (38) NYXY XXXXXXX XXXXXXXXXXXXXXXXX Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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