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यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथ : सन्देश-वन्दन
कोटिकोटिवन्दन...
जालनाक
वे निरासक्त थे.....
कभी-कभी व्यक्ति विचार करता है कि मुनि वर्ग तो बहुत देकने को मिलते हैं, किन्तु उनमें सच्चा मुनि कौन है? सच्चे मुनि की पहचान क्या है? सच्चे मुनि के लक्षण गुरुनानक ने इस प्रकार बताए हैं
हरष शोक जाके नहीं, बैरी मीत समान। कहे नानक सुन रे मना ! मुक्ति ताहिं ते जान॥ इस्तुत निंद्या नाहिं जिंह, कंचन लोह समान ।
कहे नानक सुन रे मना ! मुक्त ताहि तै जान॥ इसका तात्पर्य यह है कि सच्चे मुनि की कुटुम्ब-परिवार, धन-वैभव, भोजन-वस्त्र आदि किसी में भी आसक्ति नहीं होती है। जैसा मिल गया खा लिया, जैसा मिल गया पहन लिया।
इस संदर्भ में यदि परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. के जीवन पर दृष्टिपात करते हैं, त वे इस कसौटी पर खरे उतरते हैं। तब हम उन्हें निरासक्त कहने के साथ-साथ एक सच्चा मुनिप्रवर ही नहीं मुनिरत्न भी कह सकते हैं। कि उनके दीक्षा के सौ वर्ष हो गए। एक शताब्दी के पश्चात उनका स्मरण उनकी महत्ता को प्रकट करता है। इस दृष्टि से वे मानसिक रूप से आज भी जीवित हैं। शताब्दी वर्ष के अवसर पर श्रीमद् यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है, यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। मैं आपको इस आयोजन की सफलता के लिए हृदय की गहराई से शुभकामना देता हूं और परम पूज्य गुरुदेव के पावन चरणों में कोटि-कोटि वंदन अर्पित करता हूं। प्रति, ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण'
श्रद्धापना श्री मोहनखेड़ा तीर्थ प्रधान सम्पादक
विमलचन्द्र रूपचंदजी वजापत श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ
आहोर-चेन्नई
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