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यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथ : सन्देश - वन्दन कोटको
काटिवन्दनारे... - Spopकि
वे निराभिलाषी थे....
मुनि सुख या दुःख की वासना से रहित होते हैं। वे दोनों ही परिस्थितियों में समभाव का अनुभव करते हैं। उनके मन में किसी भी प्रकार की कामना या इच्छा नहीं रहती है। यहां तक की वे मोक्ष प्राप्ति की भी कामना नहीं करते हैं। जो कि
'मोक्ष भवे च सर्वत्रा निष्पृहो मुनि-सत्तमः।'-इसका तात्पर्य यह है कि मुनि को मोक्ष प्राप्ति के विषय में भी निष्पृह होना चाहिए। इसका कारण यही हो सकता है कि मोक्ष की कामना भी आर्त्तध्यान का कारण बन सकती हैं। इसलिए गीता में भी निष्काम होकर कर्म करने के लिये कहा गया है। आशारहित कर्म करो, फल की इच्छा मत करो, वह तो स्वतः ही मिल जाता है।
परमाराध्य गुरुदेव आचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. ने कभी कोई कार्य किसी फल प्राप्ति के उद्देश्य से नहीं किया। उन्हें तो बस तो बस कार्य करना है, साधना करना है, फिर क्या होगा? क्या नहीं होगा? इस विषय पर कभी विचार ही नहीं किया। उन्होंने कभी कोई अभिलाषा नहीं की। वे निराभिलाषी थे। सही अर्थों में मुनि थे, संत थे।
उनके दीक्षा शताब्दी वर्ष के अवसर पर आज जब यह सुना कि उनकी स्मृति में श्रीमद् यतीन्द्रसूरि दीक्षा स्मारक ग्रंथ का प्रकाशन हो रहा है तो मन आल्हाद से मर गया। आपके इस आयोजन की सफलता के लिए अन्तरमन से शुभकामना करते हुए पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि वंदन।
प्रति,
वंदन श्रद्धा सुमन अर्पित कर्या
मोतीलाल प्रकाशचन्द्र ज्ञानचन्द ऋषभकुमार (एडव्होकेट)
सनिक राजेश वोहरा, इन्दौर
ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण' श्री मोहनखेड़ा तीर्थ प्रधान सम्पादक
श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ NXNENENINENaNaNENENENENENDIENPNENENINEN2 (30) RENENENERENENENBNPNENENENENENINENENENENE
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